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बिहारी बिहार ।

, विहारविहार।। १६३ ॥ चितु पितुघातक जोग लाख भयो भयँ सुत सोग । । फिर हुलस्यो जिय *जोयसी समझ्यो जारज जोग ।।६५३ ।। जारज जोग विलोकि जातसी हिय अति फूल्यो । पुनि तिय की गति सुमिरि दुखित हे आनँद भुल्यो । सुकवि वार हीं बार बार तिथि निरखत जित तित । चिललिख्यो सो ठठक गयो चिन्तत चञ्चल चित ॥ ७६२ ॥ वह धन लै अहसान के पारो देत सराहि । वैदवधू हँसि भेद सो रही नाहमुख चाहि ॥ ६५४ ॥ रही नाहमुख़ चाहि फेर पियमुख के चाहति । सुत की आसा पाइ अधिक पुनि हीय उमाहति ॥ सोऊ लखि लखि दुहुन सुकवि हँसि रह्यो मन हिँ । । मन । वैद वापुरा समुझि सके नहिँ फूल्यो बहुधन ।। ७६३ ।। 1:गोपिन के अंसुवनिभरी सदा असोस अपार । डगर डगर नै + हो रही वगर वगर के वार ।। ६५५॥ | बगर चंगर के चार बार ही वारि निहायो । डरि डर हिय अकुलाइ किहूँ । पगजात न धारया ॥ वापी कृप तड़ाग एक हे गये अनगिन के । गाढ़ बाढ़ । सी रहते सुकवि अँसुवन गोपिन के ॥ ७६४ ॥ ३ स्यामसुरति करि राधिका तकति तरनिजा तीर । अनुवनि कति इतरेस की खिनक खहीं नीर ।। ६५६ ॥ ० ३ ३ ६ : नियों ने यह दाही मंस्कृत टीका में नहीं है ॥ वैद ने इम म पुत्र हो गई यह क पा दिया । ३ दियो ३ ६द के। म का प्रिय घा मी एम् भेद को दैट न समझता भी है।

  • * * * में है भीर * फिर विंय को दोर देती हैं !( प ट ) के यह टोहा *
  • : * *:* ६ । * * दी है त - तगेम ( • R०) तट । ग्री” सारा । 4