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संक्षिप्त निजवृतान्त ।

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संक्षिप्त निजतान्त ।

  • पुनः इसको बहुतश्रम से तैयार किया ॥ सं० १८४० में कलकत्ते से हरियाणा के हिसार की यात्रा की। । सं० १८५० में छुट्टो लेकर देश भ्रमण के लिये मैं चला। डुमरांव में रीवांनरेश से साक्षात् हुआ । * गया में मध्वाचार्य का दर्शन हुआ । फिर में बम्बई गया यहां बल्लभकुलभूषण गोखामो श्री १०८ जीवन* लालजी महाराज बिराजते थे ( इनने पहले कुछ मुझसे पढ़ा था ) इनने भी मेरा साहाय्य किया। हम में लोग साय २ पटने आये । यहां अनेक सभायें हुई । काशी की महासभा में कांकरौलौनरेश गोस्वामी

श्री १०८ बालकृष्णलाल महाराज ने मुझे ‘‘भारतरत्न' पद सहित सुवर्ण पदक (तरामा) दिया ( १८५१) । फिर गोस्वामी श्री १०८ जीवनाचार्य के साथ मैंने पंजाब को यात्रा की। सहारनपुर, लाहोर, अमृतसर, आदि स्थानों में होते हुए डेराइस्माइल खां में कुछ दिन रह कर डेरामाजी खां गये। यहां पर मैं दो मास बीमार पड़ा रहा। जोवनाशा जाती रही । परन्तु आयुःशेष * था। अच्छा हुआ पुनः सुल्तान पहुंचा। वहां महासभायें बड़ी धूम से हुई । घटिका शतक शतावधानाः 4 दि कौशल देख पण्डितों ने प्रशंसापत्र दिये । फिर वहां से शिकारपुर, रोढ़ी, शक्कर, सेवन, अहमदपुर ३ अादि स्थानों को देखते हमलोग नगरठट्ठा पहुंचे। वहां से कुछ आवश्यकतानुसार लौट कर मैं काशी चला आया । यह यात्रा डेढ़ वर्ष की हुई ॥ धीरे २ भागलपुर स्कूल की अवनति होने लगी, लड़के घटने लगें । गवर्नसेना ने मुझे भागलपुर से। वदल के छपरा भेज दिया जो इस समय बिहार में प्रथम है और सार बङ्गाल में भी ऐसे स्कूल कदा। चित् ही एक दो और हीं तो हो । । यहां से भी ग्रीष्मावकाश में मैं बम्बई, श्रीजीद्दार, जयपुर आदि स्थानों में यात्रा कर चुका हूं ॥ - * महाराजाधिराज श्रीअयोध्यानरेश ने मुझे * शतावधान पद सहित सुबर्ण पदक तथा सन्मान पत्र दिये और बम्बई में गोस्वामी श्री १०८ घनश्यामलालजी महाराज ने महा सभा कर “भारतभूषण' । पद सहित सुवर्ण पदक दिया। घोड़ेही दिन हुए किसी कारण से मैं जयपुर गया था फिरती बार श्रीमथुराजी में मेरे सचेगुणग्राही * गोस्वामी श्री १०८ जीवनलालजी महाराज का दर्शन हुआ। वे मुझे साथ ले ग्वालियर पधारे । वहां । छनौ महाराज के आधिपत्य में अनेक सभा हुई और उपदेश व्याख्यानादि हुए। वहां के प्रायः सभो मुख्य मुख्य पण्डितों ने मुझे आशीर्वाद पत्र दिये हैं । इनदिनों मैं छपरे में अध्यापन कर रहा हूं। थौमहारानी विक्टोरिया को कोटि कोटि धन्यवाद । * दे रहा हूं जिसकै अवलम्व से मेरे ऐसे कदय पण्डितों का भौ. सुख से कालयापन होता है। भारतीय । विद्दानों की मुझपर वड़ी कृपा रहती है और उसौ से मैं आनन्द में रहता हूं। भगवान ने मुझे एक के कन्चा दी है और एक पुत्र चिरञ्जीवी राधाकुसार सातएँ वर्ष में है ॥