पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७०

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544444444343434444444444 4 4444* --- - । तापै रचि रोना मेनो भींत पर चित्र वेंचि अाशय लवायो सुछ जैसे कोऊ चौठी है ॥ जाकी रस माधुरो पै सरस मुजानन की कविताई सु औरन की लागत ज्यों सीठी है। हौं तो विश्वनाथ मुक्त कण्ठ पुकारौं अजू अम्बादत्तजूको कविताई अतिमीठी है। कबि लाल विहार के दोहरा पै विसुनाथ किते कविताई करो ।। पर कुण्डलिया रचै लगे कैते रही सवही की अधूरी परी॥. .. दिढ़ के पन अम्बिकादत्त = व्यास रमापति प्रीति हिये में धरी । सुविहारोविहार रच्यो सिगरो रचना के सुधा मधुराई भरी ४ माझा ( जिला सारन । निवासी श्याम कवि कृत।... कुण्डलिया ते सतसई सोभा मौगुन कौन। । :: जुगन्न लाड़िली लाल की कीरति कलित नबौने ॥ कीरति कलित नवीन सुनत गुन्जिन हितकारी । जिन चरनन को धूरि मुनिन निज सिर पर धारो ॥ .:..: मुदित होंहि नर नारि बिलोकत अद्भुत चलियां । .... । | सोधि सुकवि वर स्याम, कौन ऐसौ कुण्डलिया ॥ .. " . पटनानिवासी बाबू पत्तनलाल उपनाम ( सुसीलः) कवि कृत ।। । जैसे मृगनैनी पिकवैनौ चन्दमुवौ सोभा औरह सुसौल वढ़ साजत सिँगार सों। विविध मसाले मेवे डारिकेते पाक मॅाहिँ बढ़त सुगन्ध औ सवाद मजेदार सों” ॥ भारतरतन व्याम अम्बादत्त कवि रच्यो तैसेहीं विहारी को विहार सम्वुसार सो” । एक तो अमोल दोहे आप मनमोह लेत तापैं सोहे कुंडल से अंति ही बहार सो॥१॥ सवैया ।। एक तो दोहं विहारी रचे अनमोल महा सिगरो जस गावै । तावै सजे भलि कुण्डलिया कवि अम्बिकादत्त महा मन भावे । सो सस्तु है या विहारीविहार में सोने में जैसे सुगन्ध समावै । । याहि प्रसंसिव हैत सुसील की बुद्धि नहीं कहु आवर पावै ॥ २ ॥ व पी भाव में गुप्त रह फछु वुझन माहिं रही कठिनैया ।।