पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५३

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| भूमिका । । (१३) यूसुफखांकृत टीका-डेढ़ सौ वर्ष से अधिक बौत किसी यूसुफखा ने टौका की अथवा उनके में नाम से किसी ने बनाई ॥ . ' . (१४) रामबख्श कात टीका--सिरमौर के राणा के सभाकवि रामबख्श कवि थे. (रामकवि) इनने

  • एक साहित्यग्रन्थ हिन्दी में बनाया और बिहारी पर टीका रचौ । (इनका समय ठौक विदित नहीं) ॥

(१५) वैद्यक टौका--सुना है कि किसी छोटूराम नामक विहान ने यह टीका की है। इस टीका में सब दोहों का अर्थ वैद्यक में किया है ॥ | (१६) देवकीनन्दन टीका–काशीनिवासी प्रसिच जिमींदार बाबू देवकीनन्दन के हारकवि ठाकुर कवि की बनाई हुई यह टौका है इस टीका की रचना सम्बत् १८६१ में हुई हैं ठाकुर कवि के पिता ऋषिनाथ थे । अपने अन्य के आरम्भ में इनने अपने प्रभु बाबू देवकीनन्दन के पूर्वजों का विशेष वर्णन किया है। इनका पूर्व निवास असनौ नामक ग्राम में था। इनने अपने विषय में इतना लिखा है;- पुत्र सुकवि रिषिनाथ को हाँ है ठाकुर नाम । असनीबासी मै कह्यो या लषि नृप गुनधाम ॥ प्रायः भाट जाति कवीश्वरों काही असनौ ग्राम है इसलिये ठाकुर भी उसी जाति के कवि थे ऐसा निश्चय होता है । प्रसिद्ध सेवक कवि इन्हीं के कोई थे । . इनने बिहारी के जीवन के विषय में विचित्र हौ राम कहानी लिखी है सो कविजनी के अवलोक- नार्थ ज्यों की त्यों प्रकाशित की जाती है- दोहा।। “विप्र विहारी सुख भो ब्रजबासौ सुकुलीन । ती तिय ती कविता निपुन सतसैया तेहिं कौन ॥ १ ॥ । जाहिर जग जैसाहि नृप धौरबौर कछवाह । दक्ष दक्षिना देत तो नित प्रति पर्ष अथाह : ॥ २ ॥ कवि बिहारी विप्र तहँ जाइ दच्छिना पाई । नित निवकृत सन्तोष सो निज घर सुख सौं” आई ॥३॥ तेहि नृप अति सुन्दर सुनी अपर महीपकुमारि । व्याहि ताहि ल्यायो महल बस भो रूप निहारि ॥४॥ राजकुमारि न सों” रही मुगधा लायकभोग । तऊ महीपति वस भयो भूलि सकल संजोगे ॥ ५ ॥ गये बिहारी विप्र तहँ सह्यो दच्छिना नाहि । दुखित लौट आये घरै कया कही तिय पाहि ॥ ६ ॥ वोध कियो तिय पिय सुनो दुख न करो मन माहिं । दिय दोहा लिरिख यों कह्यो जाहू जहा मरनाह । दोहा नृप जैसाहि कीं दीजो तहँ पठाइ । जहँ तियबस हैं महल मैं ऐहैं आनँद पाइ'. ॥ ८ ॥ लहि तिय को उपदेश इमि चले बिहारी बिघ । तिय वस नृप जैहिँ महल तेहि योदो आए किम ॥en |* | दिय दोहा दासिहि कच्चो दीजै नृप को जाइ। सो तेहिं दिय नृप को कही इिज की दसा बनाई॥१०॥ ।