पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५५

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. . भूमिका । . . .:: :: . बिहारीतियत उत्तर। “तौ अनेक औगुनसरी वाहे याहि बलाइ । जो पति सम्पति हूं बिना यदुपति राखे जाइ” ॥ ३० ॥ प्राननाथ पत्र लिखी हुतौ वोलैव काज । बाँचि तिन्है दोहा लिख्यो साजि गरबहर साज. ॥ ४० ॥ ।। बिहारीतियात जबाब । दूरि भजत प्रभु पौठि है गुन विस्तारन काल 1 प्रगटत निरगुन निकट ही चङ्ग रङ्गः गोपाल’’ ॥ में दोउ दोहा सब वस्तु जुत छत्रसाल के लोग । आइ दिये दोहा दुवो वस्तु के ह्यो कवि जोग ॥ दोऊ दोहा बँचि के प्राननाथ छतसाल । वस्तु फिरौ को लै भये कवि गुन कहे विसाल ॥ ५३ कथा सुनी जैसाहि सब सुकवि बिहारी काज । ग्राम बहुत है सब दई राज सिरौ कौ साज ॥ ४४ ३ करो बिहारौ वौर्ति यों पतिव्रता सु प्रवीन । करी बिहारी सतसई जग जाहिर यह कौन ॥ ४५ ॥ राधा हरि जु कृपा करें तो मानें सव कोइ । सु तिय बिहारीसतसई सबै बखाने लोइ ॥ १६ ॥ | (१७) प्रभुदयाल पॅाड़े कृत टोका--यह टौका सं० १९५३ में कलकत्ता बङ्गवासी आफिस से प्रका। शित की गई है। इसके रचयिता पण्डित प्रभुदयाल पॅड़े माथुर चतुर्वेदी हैं। ये जिला आगरे के नि। वासी और कानपुर के पण्डित प्रतापनारायण सिम्र के शिष्य हैं । इस समय इनका वय २१ वर्ष का है। न और प्रसिद्ध संवादपत्र हिन्दी वङ्गबासी के सहंकारी सम्पादक हैं । यह टीका कदाचित् अति शीघ्रता से लिखी गई है। क्योंकि अनेक दोहों के पाठ भी गड़बड़ हैं और अनेक दोहों के अर्थ भी गड़बड़ हैं। । विशेषता यही है कि टीका की भाषा बहुत उत्तम है और अन्वय तथा शब्द व्युत्पत्ति का क्रम अच्छा है ॥ ० । | (१८) विहारोरत्नाकर—यह टीका थोड़े ही दिन हुए कि बन के प्रस्तुत हुई है और शीघ्र हौ छपने- वाली है टीका बहुत ही छोटी है परन्तु लगढग पचीस दोहों के अर्थ बहुत ही अपूर्व हैं। और दोहों के ।

  • पाठ जहाँ तक हो सका बहुत ही शुद्ध किये गये हैं। इसके ग्रन्थकार इस समय के काशी के प्रसिद्ध

मधुर कवि हैं। इनका वास्तविक नाम बाबूजगन्नाथप्रसाद है। ये इस समय लगढग पचीस वर्ष के होंगे। अंग्रेजी में इनने वी० ए० पास किया है और उर्दू, फारसी में बहुत अच्छा अभ्यास है । सन् १८३

  • में साहित्य सुधानिधि नामक मासिकपचं निकाला था. उसे ये और बाबू देवकीनन्दन ( उपन्यासलहरी'

में के वर्धमान सम्पादक ) खत्री मिल के सम्पादित करते थे। इनका कविता का नाम रत्नाकर है ॥ इनने और भी कई ग्रन्थ रचे हैं उनमें समालोचनादर्श, हिंडोला, घनाक्षरीनियमरत्नाकर आदि कई एक छप चुके हैं । ये अग्रवाले बनिये हैं और काशी में शिदालेघाट पर रहते हैं । .... ( एद्य ) (१०) असरचन्द्रिका-इस अपूर्व पद्यटोकाः ग्रन्थ के रचयिता सुरतिमित्र थे। इनका निवास स्थान

  • आगरा था। ये कान्यकुल ब्राहाण थे, इनका जन्मादि का संवत् तो नहीं मिलता परन्तु इनमें अपना ग्रन्थ