पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहारीबिहार।। ढीठौ दै बोलति हँसति पौढ़ विलास अपौढ़। .. त्यौं त्यौं चलत न पियनयन छकये छकी नवौढ़ ॥२८॥ छकये छकी नबोढ़ हँसत फूलन बरसावति । दै दै गुलचा गाल हठीली हिय हरसावति ॥ सुधासार सौं भरयो बचन बोलति अति मीठौ । सुकवि ठठक गयो भाव सबै लखि वाको ढीठौ ॥ १७॥ :

  • चाले की बातें चली सुनति सखिन के टोल।

... गोये हूं लोचन हँसति बिहँसत जात कपोल ॥ २९ ॥ | विहँसत जात कपोल रुमञ्चित व्है गई अँग अँग। सेद सगवगी भई

  • हँग्यो हिय हूँ ताही रँग ॥ मन्द मन्द पुनि कम्प पाई तन लाग्यो हाले ।
  • सुकवि तियाहिय पीय परयो सुनतै निज चाले ॥ ४८ ॥..... ।

लखि दौरत पियकरकटक बास छुड़ावन काजं ।' बरुनीबन दृगं गढ़नि में रही गुढ़ौ करि लाज ॥ ३० ॥ लाज लजाई तिया ऑखि अपनी ही मुँदै । पुलकि पसीजति आनँद की टपकावति बूंदै । नाहीं कबहूँ कहत होत चुपकी कबहूँ सखि । सुकवि प्रेम

  • मैं चूड़ि रही निज पिय क लखि लखि ॥ ४६॥.

. दीप उजेरे हू पति हिँ हरत बसन रतिकाज । ... | रही लपटि छबि की छटनि नैको छुटी न लाज । '३१।। नैको छुटी न लाज मुँदि दृग जुग निज़ लीनो । रससमुद्रः मैं बोरि हियो

  • : अन्तरहित कीनो ॥ रँगी स्यामरँग तिया स्यामही चहुँदिस हेरो। अन्धकार है।

सो कियो रहत हू दीप उर्जेरो ॥ ५० ॥

  • * चाले की = गौने की।