पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/६२

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केवल एक बात और, और बिहारी हिंदुस्तानी का अंत। आखिर बिहार की हिंदुस्तानी का होनहार क्या है? अच्छा होगा उसी के 'माहवार होनहार' से इसे भी देख लें। 'होनहार' का मुखचित्र आपके सामने हैं। होनहार बच्चे कुछ पड़ रहे हैं। क्या पढ़ रहे हैं इससे कोई काम नहीं। बहस बस इस बात की है कि उनके सामने 'लिखी' क्या है। 'लिपि' और 'रव़न' की हिंदुस्तानी तो 'लिखी' बन गई, पर वह किताब लिखी किस 'लिखी' में गई, कुछ इसका भी पता है? अच्छा, न सही। पर इतना तो प्रत्यक्ष है कि वह 'लिखी' जिसके सामने है वह एक मुसलमान है और दूसरा जो बगल से उस पर जम रहा है वह एक हिंदू है। याद रहे, 'हिंदुस्तानी' पर इतना जोर सिर्फ इसीलिये दिया जा रहा है कि उसके प्रचार से देश में एकता स्थापित होगी। पर क्या यह चित्र किसी एकता का द्योतक है? जरा गौर से देखिए। मुसलिम बालक का लिबास क्या है? उसे कट्टर लिबास क्या दिया गया है? क्या उसके सिर पर गाँधी या अजमल टोपी ठीक न उत्तरनी? क्या हिंदुस्तान ने गांधीटोपी को कौमी टोपी के रूप में स्वीकार नहीं कर लिया है? क्या राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू और शिक्षा सचिव महमूद साहब इस टोपी को पसंद नहीं करते? यदि हाँ, तो 'होनहार' के मुखचित्र में उसकी उपेक्षा क्यों? क्या इसका भी कुछ भीतरी रहस्य है? क्या हमारा होनहार भी यही है? अच्छा, यही सही। फिर बिहार सरकार स्पष्ट क्यों नहीं कह देनी कि उसकी साधु दृष्टि में वह