पृष्ठ:बीजक.djvu/१०३

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(५२) बीजक कबीरदास । रामचन्द्र हैं तिनको वेद, पुराण, कुरान, शास्त्र, महात्मा इनकेद्वारा देखतऊहै। औ जिनको बर्णन करिआये सनकादिक महात्मन को उद्धार द्वैगयो यही ज्ञानदृष्टि देखतऊ हैं परन्तु ये मूर्ख जीव गुरुवालोग ना जाने तेहिते अदृष्टि कहाँबैं हैं कहै आँधरे कहावै हैं । परमतत्त्व श्रीरामचन्द्रही हैं तामें प्रमाण । (रामएवप रंतत्त्वं श्रीरामब्रह्मतारकम् ॥ इतिहनुमदुपनिषद् ) जो यह कह शुकसनकादिक येऊ न जान्यो तौ अब को जानैगो नास्तिकपना अवै बस्तु मिथ्या होय है। ताते साधु तै जानतई हैं जिनको साहब जनाय दियो है कबीरौजी कहै हैं । ( ध्रुवप्रह्लादउबारिया सोहरिहमरेसाथ । हमको शंकाकछुनहीं, हमसेवें रघुनाथ ) इति आठवीं रमैनी समाप्तम् । अथ नवीं रमैनी। चौपाई । बाँधे अष्ट कष्ट नौ सुता । यमवधेिअंजनके पूता ॥१॥ यमकेबाहनबाँधिनिजनी । बाँधेसृष्टिकहालौंगनी ॥ २ ॥ बांधे देव तेंतीस करोरी । सुमिरतबंदि लोहगैतोरी ॥३॥ राजासुमिरै तुरियाचढ़ी । पंथीसुमिरि नामलैबढ़ी ॥ ४ ॥ अर्थ बिहीनासुमिरैनारी। परजासुमिरैपुडुमीझारी ॥६॥ साखी ॥ बँदि मनाय फल पावहीं, बँदि दिया सो देव ।। कह कबीर ते ऊबरे, निशि दिन नामहि लेव ॥६॥ बांधे अष्ट कष्ट नौ सूता। यमबांधे अंजनीके पूता ॥ १ ॥ | अष्ट नै अष्टाङ्ग योगहैं औ कष्ट जो बिज्ञान तेहिते बांधिगयो धेाखा ब्रह्मको बिज्ञानरूपकटेहै तामें प्रमाण ॥ (अव्यक्ताहिगतिर्दुःखदेहवद्भिरवाप्यते )॥ इतिगीतायां ॥ श्रेयःश्रुतिंभक्तिमुदस्यते विभो क्लिश्यन्तियेकेवलबोधलब्धये । तें