पृष्ठ:बीजक.djvu/१०९

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(६८) बीजक कबीरदास । ज्ञान कहैं सो जब सोऊ न रह्या तब वह दशामें बिचारिदेखो तुमहीं रहनाउहौ, तुम्हारोई अनुमाने ब्रह्महै, तात मिथ्याही है । जब तुम्हीं रह गये तब तुममें तो माया ब्रह्मते छूटनेकी सामर्थ्य है नहीं जो सामथ्यहोती तौ पहिलेही ते तुमको काहे को बांधिलेती । याते तुम डेराउही कि, हमकैसे छूटेंगे । सो यामाया औ धोखाब्रह्मका डर तुम काहेको मानतेहौ । मैं जो अनिर्वचनीयह ताके तुम अंशही तुमहू अनिर्बचनीय हौ नाहक धोखा ब्रह्म औ माया कों अनुमान कैकै नानादुःख पावतेही । तुममाया ब्रह्मको भ्रमत्यागि मेरे अनिर्बचनीय नाम में लागकै मेरे पासआवो मैं रक्षाकरि लेउँगो । यह मालिक ने श्रीरामचन्द्र हैं ते कहै हैं ॥ ४ ॥ ऊउतंगतुम जातिपतंगा । यमघर किहेहु जीवकै संगा॥६॥ नीमकीटजसनीमपियारा । बिषकोअमृतमानगंवारा ॥६॥ | वहजोमाया औं धोखा ब्रह्मअग्निरूपताकी उत्तुंगकहे बड़ीऊंची लपटैहैं तुमजातिकेपतंगāकै वामेंकाहेजरिजरिमरौहै। । सोहेनीव नानाबस्तुनकोसंगकरि जाहीमेमनलगायमरयो औ सोई भयो याहीभांतिजनमिकै मरिकै यमकेपासघरबनायेही अर्थात् या संग का प्रभावहै जो यमके यहां घरबनायेहैं ६ जैसेनीमके किरवा को नीमही पियारळगैहै, जो मिष्टान्नौ पावै तौ न खाय, ऐसे बिषरूप जो विषय ताको अमृतमानिनँवार जोजीवहँसो खायँहैं ॥ ६ ॥ विषकेसंगकौनगुण होई। किंचितलाभमूलगो खोई॥७॥ विषअमृतगोएकहिसानी। जिनजानातिनबिषकैमानी॥८॥ सोयाबिषरूपी विषयके संगकीनगुणहै क्षणभरेकोसुर्खहै औ सबकोमूल जो मेरोराज्ञानसो नशायगो अनेकजन्म दुःखपावनलग्यो ७ साहब कहै हैं कि और नाना देवतन को जो नामजपिवो औ तिनहीं के लोक में नाय सुख पाइवो या तोबिष है | मेरे नामको जपिबो मेरे लोकमें जायसुख पाइबो यातो अमृत है। सो ये दून बिष अमृत एकैमें सानिगो कैसे जैसे साहबको नामलीन्हे मुक्त लैजाय है साहबके लोक में जाय सुखपावै है ऐसे औरहूदैवतनके नामलीन्हेसे