पृष्ठ:बीजक.djvu/१०८

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रमैनी। (५७) साखी ॥ मुवा अहै मरिजाहुगे, सुये कि वाजीढोल ॥ स्वप्नसनेही जगभया, सहिदानी रहिगाबोल ॥ ११ ॥ आँधर गुष्टि सृष्टिभै वौरी । तीनिलोकमहँलागिठगौरी॥१॥ साहब कैहैं कि जे मोको ज्ञानदृष्टि करके नहीं देंखे ते जे अँधिरहैं ते माया औ निराकार धोखा ब्रह्मयाहीकी गोष्टीजोवार्ता सो करतेभये । ताहीमें सारीसृष्टिबौरीद्वै जातभई कोई तौ मैंही ब्रह्महौं यमानि अपने को मुक्तमानत भये, कोई जीवात्मैको मानै कोई शून्नहिको मानतभये कोई मायामें परि नानादेवतनकी उपासना कर अपनेको भक्तमानत भये । सो यही ठगौरी जो माया. है सो तीनोंलोकमें लागतभई सो आगे कहै हैं ॥ १ ॥ ब्रह्महिंठग्योनागसंहारी । देवनसाहतठग्योत्रिपुरारी ॥२॥ राजठगैौरी विष्णुहिंपरी । चौदहभुवन केर चौधरी ॥ ३॥ मायाब्रह्माकोठग्यो ते संसार की उत्पत्ति करनलगे शेषनागको संहारिकै कहेबांधिकै नागकहनाई जो पाठहोय ती मायाब्रह्मा को ठगिसि ॥ शेषनाग कहँनाइकै ठगिसि सौ शेषनाग पृथ्वीको भारशीशमें धरतभये । देवन सहित महादेवको ठग्यो ते संसारके संहारमेंळगे । देवता अपने अपने काममें लगे २ औ । चौदह भुवन को चौधरी विष्णुको करिकै ठग्यो ते संसारको पालन करनलगे । याहीरीतते मायाते जेगुणाभिमानी रहे तिनको सबकोठग्या ॥ ३ ॥ आदिअंतज्यहिकाहुनजानी ।ताकोडरतुमकाहेनमानी॥४॥ फिरिकैसी है माया जाको आदि अंतकाई जनबई न कियो काहेते न जान्यो वा कुछबस्तुही नहीं है भ्रमहीमात्र हो । नेतोपदार्थ देखैहै सुनैहै कहैहै सो सबत्रिगुणमय है । गुण न आत्मई में है न ब्रह्महीमें है । ताते ये सब मिथ्याहीहैं । औ धोखा ब्रह्ममिथ्या है कैसे सो कहै हैं । सबको निराकरण करतकरत जो वा रहिनाय है ताही को मानौंहौं कि सो ब्रह्महमहैं ताहूको मूलअ