पृष्ठ:बीजक.djvu/१११

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(६०) बीजक कबीरदास । अथ बारहवीं रमैनी । चौपाई।। | माटिक कोट पषाणकताला । सोई बनसोई रखवाला १ सो बनदेखत जीवडेशना । ब्राह्मण विष्णुएक करिजाना २ जोरि किसान किसानी करंई । उपजै खेत बीज नहिंपरई३ त्यागि देहु नर झेलिक झेला । बूड़े दोऊ गुरु अरु चेला - तीसर बूड़े पारथ भाई । जिन बन दाह्यो दवा लगाई॥६॥ भूकि भूकि कूकुर मरिगयऊ। काज न एकस्यारसोंभयऊ६ साखी ॥ मूसविलारी एकसँग, कहु कैसे रहिजाय । यक अचरज देखौ संतो, हस्ती सिंहहिखाय॥७॥ माटिककोटपषाणकताला । सोईवनसोईरखवाला ॥१॥ माटीका कोट यहशरीर है मनरूप पाषाणका तालाहै कठिनभ्रमजौनेते माया औं धोखा ब्रह्ममें लग्योहै सोई भ्रमके बनको नानीबाणीमाया ताको रक्षक सोई भ्रमहीं है जबभ्रम मिटै तब माया धोखाब्रह्म तबहीमिटै संसारताला खुलै तबमैं सर्वत्र देखपरों ॥ १ ॥ सोबनदेखतजीवडेराना । ब्राह्मणविष्णुएककारजाना॥२॥ तौन जो भ्रमको वनै संसारं नानाशास्त्र तिनके द्वारा देखिकेडराननाय नाना मतनमें तुम सब नहिं पारपाये कि कौनमतलैकै संसार पारहोई ये शास्त्र एक मतनहीं कहैहैं तब डेराय ब्राह्मण भये ॥ ब्रह्मनानातिब्राह्मणः ॥ सब ब्रह्मको जानतभयेः वैष्णवजे ते एक व्यापक तुमसब विष्णुही को मानतभये व्याप्य पदार्थ न मानतभये सो हेजीवो! जो व्याप्य पदार्थ न होयगो तो व्यापक कामें होयगो ताते एक मानिबो धोखई है । अथवा ब्राह्मण जेहैं ब्रह्मज्ञानी ते एक