________________
रमैनी। (६१) ब्रह्ममिाने औं वैष्णव जैहैं विष्णुके दास तौनेके एकै मानतभये कि दास भाव करत करत जब अंतःकरण शुद्धहोइगो तब अभेदई भावहोइंगो आपही विष्णु मानगो काहेते कि देव वैंकै देवताकी पूजा करिबेको होइं है यह शास्त्रमें लिखा है ताते हम विष्णुही वैजाइँगे तौने दृष्टांत देईहैं कि वहै तौ बनैहै वहै रखवार तौ कैसै पूरपरै माया ब्रह्म ईश्वर ई सब मनके कल्पित हैं मनै है औ यंही मनको रक्षक मौन अथवा ब्रह्मज्ञान को रक्षक मानै है सो वही तौ भ्रम है औ वही को रक्षक मानै है सो कैसे पूरपरैगो ॥ २ ॥ जोरिकिसानकिसानीकरई । उपजैखेतबीजनाहिंपरई ॥३॥ | जैसे सिगरी सामग्री जोरि किसान किसानी करै है जौनबीनखेतमें बॉवैहै सोई उपजैहै । तैसे हेजीवो तुमसंब नानाबाणीको बिस्तार कार नानामतनमें लाग्यो सोईफल भयो मेरो जो रामनाम बीजे सोतौखेतमें परबई ने कियोमेरोज्ञानफल कहांतेहोय तुम्हारे खेतमेनानामतनको फल संसार उपज्यो ॥ ३ ॥ छोड़िदेहुनरझेलिकझेला। बूड़ेदोऊगुरू अरु चेला ॥ ४॥ तीसरबूड्डे पारथ भाई । जिनवन दाह्यो वालगाई ॥५॥ सो हे नरौ! झेली का झेला तुमछोड़ि देहु। धोखा ब्रह्ममें लागिकै तुममाया को झेला चाहौहौ, माया तुमहींको झलैहै या नहींनानौहौ कि, धोखा ब्रह्ममाया सबलितहै ताही मायाकी धारमें गुरु जे तुमको उपदेश किये ते औ तुमदोऊ बूड़े ४ पृथु बिस्तारे धातुहै अपने ज्ञान वाग्निको बिस्तार कैकै अपने सेवकन केने बनरूप कर्म जारि अपनेलोकनको लैगये ऐसे जे इष्टदेवता जिनको गुरुवा लोग उपदेश करैहें सो हे भाई तीसर तेऊ मायाकी धारमें बूड़े काहेते महामढ़समें वोऊ नहीं रहनायँगे ।। ५ ।।। भंकिभंकिककूरमरिगयऊ। काजनएकस्यारसोंभयऊ॥६॥ | हे नरौ ! जैसे कुकुर शीशाके महलमें अपनारूप देखि भूक भंकि मरिजायहै। |तेसै तुह्मारोई अनुभव जो धोखा ब्रह्म तामें लगि पूंकि पूंकिकहे शास्त्रार्थ करिकार