पृष्ठ:बीजक.djvu/१३४

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रमैनी । | (८३) कनक जाहै कामिनी जेहै घोड़े जैहैं हाथी जैहैं पंटंबर हैं ये संपति तो बहुत है परंतु इनके भोग करिबेको दिनतो थोरही है अर्थात् आयुर्दाय थोरी है। सोतौ भोगमें बिताबै है साहबको कब जानैगो ॥ ४ ॥ सो तै तो थेग्दी संपत्ति में वैराय गयो धर्मरान की खबर है नहीं पाई कि, जब मोको ६ नाइँगे तब सारी संपत्ति हिय परीरहि जायगी तब कौन भोगकरैगो । बिचारि साहब को जानो ॥ ५ ॥ देखित्रासमुखगोकुम्हिलाई । अमृतधोखेगोबिषखाई ॥६॥ औ दैवयोगजे कदाचित तुम्है धर्मराजको त्रासदेखिकै मुख जब कुम्हिलींयगयो कहे संसारते बैराग्यभई तब गुरुवालोगनके निकटजाइ अपनो स्वरूप समुझौ कि, मैं अमृतह मन मायादिक ते भिन्नहीं सो बाततो तू सांचबिचारी ऐसहींहै परंतु भगवत् अंशत्व तेरे स्वरूपमें है सो गुरुवालोग नहीं बतायो औरहीमें लगाय दियो सो अपनो स्वरूप समुझबो जो अमृत ताही के धोखे ते अहं ब्रह्मास्मि बिषखायगयो भगवत्दास आपनेको न मान्यो साहबको न जान्यो सर्वत्र मैहींह या मानि कहनलाग्यो ॥ ६ ॥ साखी ॥ मैं सिरजौं मैंमारहूं, मैं जारौं मैं खाउँ॥ जलथल भैरमों , मोरनिरंजननाउँ॥ ७॥ औं मैंहीं जगत् को सिरनौ हौं भैहीं मारौहाँ मैंहीं जारीहौं, जौने अग्निते। जारौहौं ताका मैंहीं खाउँह औ जलथलमै मैंहीं रमि रह्योहौं मोर निरंजन नाउँ है कैवल्य महाहैं अंजन जो माया ताते सचलितकै मैंहीं सकरौहौं ।७।। इति इक्कीसवै रमैनीसमाप्ता । बाईसवीं रमैनी। चौपाई। अलखनिरंजन लखैनकोई । जेहिके बँधे बँधा सव कोई।१॥ जेहि झूठो सो बँधअयाना । झूठी बात सच कै माना॥२॥