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पृष्ठ:बीजक.djvu/१३६

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रमैनी। | (८५) औरो आगम करेविचारा। त्यहिनहिंसूझैवारनपारा॥ ६॥ जपतीरथ ब्रत पूजेभूता। दान पुण्य औ कियेवहूता ॥ ७॥ अरु औरौ आगम ने ज्योतिष यंत्र मंत्र आदिदैकै तेऊ तात्पर्य वृत्तिते जौने साहबको कहैं ताको वारपार तो तुमको न सूझिपरयो वाच्यार्थ प्रतिपाद्य जो धोखा ब्रह्म और और देवता ताही में लागत भये॥६॥सो यहिप्रकार नाना मतन करकै मानते भये कोई नाना देवतन के जपकिये कोई तीर्थ किये कोई ब्रत किये कोई भूतनकी पूजाकिये कोई दानकिये कोई पुण्य जो यज्ञादिक कर्म ते किये ॥ ७ ॥ साखी ॥ मंदिरतो नेहको, मतिकोइ पैठेधाई ॥ जोकोइपैटैधाइके, विनुशिरसेती जाई॥८॥ सो यह सब मतमा एक नानावता धोखा ब्रह्म इनमें जो प्रीति है सो नेहको मंदिर है तामें तू धायकै मर्तिपैठै जो इनमें धायकै पैटैगो तौ विनु शिरकहे सबकेशिरे जे साहब तिनके बिना सैंतिही जाईगो कछुहाथ न लँगैगो तेरेसाधन मुक्तिदेनवाले न होवेंगे संसारही देनवाले हाइँगे अथवा तुह्मारोमाथा , काटो जायगो वृथा मारे जाउगे ॥ ८ ॥ इति बाईसवरमैनी समाप्ती । अथ तेईसवीं रमैनी। चौपाई।। अल्पसौख्यदुखआदिहुअंता। मन भुलानमैगर मैंमंता॥१॥ सुख विसराय मुक्तिकहँपावै। परिहरिसचझूठनिजधावै॥२॥ अनल ज्योति डाहै यकसंगानियन नेह जसजरै पतंगा॥३॥ करु बिचारज्यहिसवदुखजाई।परिहरिझूठा केरि सगाई॥४॥ लालच लागे जन्म सिराई।जरामरणनियरायलआई॥६॥