पृष्ठ:बीजक.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

रमैनी। | (८९) अथ पचीसवीं रमैनी। चौपाई। चौंतिस अक्षरकोयहीबिशेखा। सहसौ नामयहीमें देखा १ भूलिभटकि नर फिरिघरआवै । होतज्ञान सोसवन गाँवै२ खोजहिब्रह्मविष्णु शिवशक्ती। अनंतलोगखोजहिंवहुभक्ती३ खोजहिंगणगंधर्वमुनिदेवा । अनंतलोकखोजहिंवहुसेवा ४ साखी ।। यतीसती सवखोजहीं, मनै न मानै हारि ॥ बड़ेबड़े बीरवाचें नहीं, कहाहिं कवीरपुकारि ॥५॥ चौतिसअक्षरकोयहीविशेखा । सहसौनामयहीमेंदेखा ॥१॥ भूलिभटकिनरफिरिघरआवै । होतज्ञानसोसवनगाँवै ॥२॥ चौतिस अक्षर को विशेष धोखई है काहते हजारनाम यही चौतिस अक्षरैमें देखैहैं अर्थात जे भरि वचनमें अवै है ते माया ब्रह्मरूप धोखईहै मिथ्याही सो चौतिसै अक्षरके भीतर सबहै अनिर्वचनीयपदार्थ तोको कैसे मिले॥१॥चौतिस अक्षरको विस्तार जो निगम अगम तामें साहब को ज्ञानभूलि भटकिकै जबपार नहीं पावै है तब फिरि थकिकै आपने घटमें आय या कहै है कि एकयेहुनहीं है वेदहू तौ नेतिनेतिक है हैं तब अपनो स्वरूपमें आयेसो साहबके ज्ञान होतही गुरुवा लोग भटकाइकै अज्ञानमें डारि दिये जौन यह विचारकियो कि ये सब अनिर्वचनीय नहीं हैं सो गॅवायेदियो अनिर्वचनीय धोखाब्रह्महीको मानतभये ॥ २ ॥ खोजहिब्रह्मविष्णुशिवशक्ती । अनतलोकखोजहिंवदुभक्ती३ खोजहिंगणगैंधर्वमुनिदेवा । अनतलोकखोजहिंबहुसेवा ४