पृष्ठ:बीजक.djvu/१४२

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रमैनी । (९१) साखी ॥ जिनयह चित्र बनाइया, सांचा सूत्रधारि ।। कहही कबिरते जन भले; चित्रवंतहिलेहविचारि॥६॥ आपुहिकरताभेकरतारा । बहुविधिबासनगढुकुम्हारा ॥१॥ विधनासर्वेकीनयकठाऊं। अनेकयतनकैवनकबनाऊं ॥२॥ बिधि जे ब्रह्म हैं ते अपने कर्ता मानि सब साजुजोर अनेक यतन कै जगत् बनावतभये जैसे कुम्हार दण्ड चक्र सब साज जोरकै बासन गर्दै है सो करतार जो अपनेको कत्ती मान्यो सो वाकी अज्ञानताहै काहेते कबीरजी कहै है कि सबसाजु आगेही उत्पन्न वैरही है कौन नईसाज बनाइ करतार अपनेको कर्तामानै साजुतो सब आगेकी उप्तन्न भई है. सो कहै हैं ॥ १ ॥ २ ॥ जठरअग्निमहँदियपरजाली । तामेंआपुभयेप्रतिपाला॥३॥ बहुतयतनकैबाहरआया । तवशिवशक्तीनामधराया ॥४॥ जव महाप्रलय होइ जाइहै तबनौनकालरहिनायसै सोकाल सदा शिवरूप। ताके जठरमैं कहे पेटमें अग्नि जो लोकप्रकाश ब्रह्म तामें समष्टि जीवपर जालिदिये पराशक्ति को जाल लगाइ दिये अर्थात् अग्नि जो लोकप्रकाश ब्रह्म सो महीं है। यह मानि माया सबलित होतभयो तामें तीने माया के प्रतिपाली आप ही होतभये अर्थात् जीवनकै मानेमात्र मायाहै ॥ ३ ॥ सो माया सबलित जो ब्रह्म समष्टि जीवरूप सो अनेक यत्न कहे रामनामको संसारमुख अर्थ करि पांचौ ब्रह्म आदि सब बस्तु उत्पन्नकै समष्टिते व्यष्टिवैकै जगत् उत्पन्न किय ताका शिव शक्त्यात्मक नाम धरावतभये ॥ ४ ॥ घरकोसुतजोहोयअयाना । ताकेसंग न जाहिसयाना ॥५॥ सोकबीरजा कहैहैं कि, हे जीवो! येब्रह्मादिकतुम्हारही सुत हैं तुमहीं समष्टि ते व्यष्टि भयेहौ कि, जो घरकोपूत अयान होइ है ताकेसंग सयान नहीं जायेहै