पृष्ठ:बीजक.djvu/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(९३) रमैनी।। अथ सत्ताईसवीं रमैनी । चौपाई। ब्रह्मा को दीन्हो ब्रह्मण्डा। सात द्वीप पुहुमी नौखण्डा ॥१॥ सत्य सत्यकै विष्णुदृढाई। तीनिलोकमहँ राखिनिजाई॥२॥ लिंग रूप तवशंकरकीन्हा।धरतीकीलि रसातलदीन्हा॥३॥ तब अष्टंगीरची कुमारी । तीनिलोक मोहनिसवझारी ॥४॥ द्वितीयानामपार्वतीभयऊतपकरता शंकर को दयऊ॥३॥ एकै पुरुष एक है नारी । ताते रचिनिखानि भौ चारी॥६॥ शर्मन वर्मन देवो दासा। रजगुण गुणधरनिअकासा॥७॥ साखी ॥ एक अंडॐकारते, सब जग भयो पसार ॥ कहकबीरसवनारिरामकी, अविचलपुरुषभतार८ ब्रह्माकोदीन्होंब्रह्मण्डा । सातद्वीपपुहुमीनौखण्डा ॥ १ ॥ सत्यसत्यकैविष्णुदृढाई । तीनिलोकमहँराखिनिजाई॥२॥ अष्टांगकौन हैं ॥ (भूमिरापनलवायुःखमनोबुद्धिरेवच ॥ अहंकारइतीयमेभिनामकृतिरष्टधा) ॥ ऐसी जो इच्छारूपी नारिअष्टांगसे ब्रह्माको ब्रह्मांड देतभई औ सात दीप नवौखण्ड पृथ्वी बिष्णुको के तीनिलोकमें राखिनि कहे व्यापक करितभई औ बिष्णुको नाम सत्य धरावतभई सो आठ नाममें प्रसिद्धहै॥ ‘हारः सत्येाजनार्दनः । सो जब ब्रह्मा विष्णु देऊ अपने अपनेको मालिक भानि लरे तब महादेवनी कह्यो कि, हम लिंग बढ़ावै हैं जोई अंत लै आयै सोई बड़े ॥ १ ॥ २ ॥ लिंगरूपतवशंकरकीन्हा। घरतीकीलरसातलदीन्हा ॥३॥ तब महादेवजी सातळोक नीचे के सात ऊंचके तामेकीलवत् लिंग बढ़ाक्त भये ब्रह्मा विष्णु दोङकोपठयो कि, जाय अंतआवो सोविष्णु नायकै या कह्यो