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(९४) बीजक कबीरदास । कि, हम अंत नहीं पाये ब्रह्माकह्यों हम अंत लै आये सुरभीके दूधते नहवाय केतकीके फूलतेपूज्यो है ससुरभी औ केतकी साखीहैं तब महादेबतीनोंको झूठाजानि तीनोंको शापदियो ब्रह्माको कह्यो लोकमें अपूज्यहोउ सुरभीको कह्यो तुम्हारोमुख अशुद्धहोइ केतकीको को हमपर न चढ़ो औ विष्णुको प्रसन्न हैकै या कह्यो कि, तीन लोकमें पूज्य होउ तुम सत्य कह्यहै यह पुराण कथा प्रसिद्धहै ॥ ३ ॥ तबअष्टंगीरचोकुमारी। तीनिलोकमोहनिसवझारी ॥ ४ ॥ द्वितियानामपार्वतिभयऊ । तपकरताशंकरकोदयङ॥ ८॥ तबअष्टगी जो कारणरूपाशक्ति सो प्रसन्न वैकै तीनि लोककी मोहनहारी कुमारी सती रचिकै तपकरता जेहे तिनकेदारामहादेवजीको देतभई तौनेही को दूसरो पार्बती नाम भयो ॥ ४ ॥ ५ ॥ एकैपुरुपएक नारी । ताते रचिनि खानि भै चारी॥ ६ ॥ शर्मनबर्मनदेवोदासा । रजगुणतमगुणधरणिअकासा ॥७॥ एकै पुरुष जो है ब्रह्म अरु एकै नारी जे है माया ताते चारिखानिके जीव उत्पत्ति होतभये अंडज पिंडज स्वेदज उदृभिज॥६॥औ शर्मन जर्मन देव दासा कहे शर्मन ब्राह्मण बर्मन क्षत्री देवो वैश्य दासा शूद्र अथवा शर्मन कहे श्रोता बर्मन कईवक्ता अरुदेवता औ उकेदास रजोगुणी तमोगुणी औधरती औआकाश होतभये ॥ ६ ॥ ७ ॥ साखी ।। यकअंड ॐकारते, सब जग भयो पसार ॥ कह कबीर सवनारिरामकी,अविचलपुरुषभतार८ मंगलमें पांच ब्रह्म पांच अंड में राख्यो है या कहि आये हैं सो तामें शब्द ब्रह्मरूप जहै अंदृप्रणव ता प्रतिपाद्य जो ब्रह्म सोमायासबालितलै इच्छा आदि अष्टांगी उत्पन्नकै जगत् पैदाकियो है सो कबीरनी है हैं कि, धोखा वही है प्रणवप्रतिपाद्य श्रीरामचन्द्रही हैं काहेते रामनामही जगतमुख अर्थते