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पृष्ठ:बीजक.djvu/१५०

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रमैनी । | (९९) जैन धर्मक मर्म न जाना । पातीतोरि देवघर आना ॥३॥ दवना मरुवा चंपा फूला। मानोंजीवकोटि समतूला ॥४॥ | अरुजैनी ने नास्तिक ते धर्मको मर्म नहीं जान्या काहते कि बांधे तो मुहै। पट्टीरहेहैं कि कहूं किरवा न चुसिनाय जीवका बचाव कि हिंसा हम न करेंगे सो जिन वृक्षनमें जीव हैं तिनकी पातीको तरिकै पाषाण जे पारसनाथ देव हैं तिनमें चट्टॉवै हैं ॥ ३ ॥ दवना औ मरुवा औचंपाके फूलको तोरकै कोटिन जेनीवहैं तेसँघिकै अघायहैं तिनका तार तारिकै पारसनाथकी मूर्तिमें चढ़ावै हैं। सो अरे मूढा! प्रतक्ष जे जीव वृक्षहैं तिनका पत्रको तारकै अड़ जो पाषाहै तामें काहेको चढ़ावहौ तुम तो प्रत्यक्ष प्रमाण मानौहौ कर्म किये फल होय है यह मानतही नहीं हो पाषाणपूने कहा फल होइगो ॥ ४ ॥ औ पृथिवीकोरोमउचारे । देवत जन्मआपनोहारै ॥६॥ मन्मथ विंदु करै असरारा । कलपैविन्दुखसैनहिंद्रारा॥६॥ . ताकरहालहोयअघकूचा । छादरशनमेजैनबिगूचा ॥ ७ ॥ पृथ्वी के रोमाने वृक्ष तिनको चेलनते उखरावै हैं औ शिष्यनकी खिनको देखिकै भोगकारकै अपनो जन्म हारिदेइहैं कहे नरकको जायँहैं ।। ५ साधन कारकै मन्मथ के बिन्दुको असरारा कहे सरलकरै हैं औ कन्यनते भगिनी नाते औ उनकी स्त्रिनते भोग करै हैं तव वह विन्दु ऊपरते नीचेकोकल्पतेहै कहे बढ़तेहै औ पुनि नीचेते मेरु दंडवैकै ऊपरको चढ़ाइ लैजाईहै ॥ ६ ॥ सोने जैनधर्मी हैं छः दर्शन में बिगूचा कहे भूलि गयेहैं तिनकी औ जिनको कहिआये हैं बीर्य बढ़ावन वारे तिनको हाळ अघ कूचा कहे नरकनमें कूचे जाहि हैं ॥ ७ ॥ साखी ॥ ज्ञान अमरपद् वाहिरे, नियरेतेहै दूरि ॥ जो जानै तेहि निकटहै, रह्योसकलघटपूरि ॥ ८॥