पृष्ठ:बीजक.djvu/१५३

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( १०३), बीजक कबीरदास । अथ तेंतीसवीं रमैन । चौपाई। वेदकी पुत्री स्मृति भाई । सो जेवर कर लेतै आई ॥१॥ | आपुहि वरी आपु गरबंधा । झूठी मोह कालको धंधा॥२॥ बँधवतबंध छोड़िना जाई । विषयस्वरूपभूलिदुनिआई ३ हमरेलखतसकलजगलूटा । दासकबीर रामकहिछूटा॥४॥ साखी ॥ रामहि राम पुकारते, जीभ पारगोरोस । सूधाजल पीवैनहीं, खोदिपियनकी होस ॥५॥ वेदकी पुत्री स्मृति भाई । सो जेवर कर लेते आई ॥ १॥ यहाँकर्मकाण्ड उपासनाकाण्ड ज्ञानकाण्ड ये तीनोंकी कठिनतादेखाइ तात्पर्य वृत्तितेछुड़ाइ साहबमें लगावैहै । कबीरजी कहे हैं कि हेभाइउजौनीस्मृतिको कर्म प्रतिपादक अर्थकरि कर्मरूप जेवरीमें तुम बँधिगयेहै। स्मार्त भयेही सो स्मृति वेदकी पुत्री है तौने वेदहीको अर्थ तुम नहीं जानतेहौ धौं वाको तात्पर्य कर्म के छुड़ाईबेमें है धौंकर्सके बांधिबेमें है तौ स्मृतिको अर्थ कबजानोगे ? सो वेदकों तात्पर्य ती कर्मते छड़ायबेहीमें है कैसे जैसजीवनकी मांसमें आसक्ति स्वभावईते है वैसे छोड़वै तौ न छूटै ताते वेद नियम बंतावै है कि मांसखाय तौयज्ञमें खाय ताते या आयो कि जब बहुत श्रमकर बहुत द्रव्यलगाय यज्ञकरैगो तब थोड़ामांस बिनास्वादका पावैगो तामें या बिचारैगोकि या थोडेमांसबिना स्वाद के खाये यामें कहाहै या बिचार मांसछोड़ि देयगो याभांति कर्मकांडको तात्पर्य निवृत्तिहीमैहै औ स्मृति नाना देवतनकीउपासना कैहैं सो उन पूजनकी यंत्र मंत्रकी पुरश्चरणकी विधि कठिनहै जोकरतमें सिद्धिभयो तौ उनके लोकको गयो जो कछु बीच परिगयो तौ बैकलाइकै मारिजाइ है या भांति उपासना काण्डको तात्पर्य निवृत्तिहीमें है औ स्मृतिज्ञानकाण्डजोकहै हैं सो मनको साधन