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पृष्ठ:बीजक.djvu/१५९

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रमैनी। ( १०९) अथ छत्तीसवीं रमैनी। चौपाई । ज्ञानीचतुर विचक्षण लोई। एकसयान सयान न होई ॥१॥ | दुसरसयानको मर्मनजानाोउत्पतिपरलयरैनिविहाना ॥२॥ | वाणिजएकसवनमिलिठाना। नेमधर्म संयम भगवाना ॥३॥ | हरि अस ठाकुरते जिनजाई। वालनभिस्तगांवदुलहाई ॥४॥ माखी ॥ तेनर मरिकै कहँ गये, जिन दीन्हो गुरु छोट॥ | राम नाम निज जानिकै, छोड़हु बस्तु खोट ॥६॥ ज्ञानीचतुरविचक्षण लोई । एक सयानसूयाननहोई ॥ १ ॥ | दुसरसयानकोमर्मनजाना । उत्पतिपरखैरेनिविहाना ॥ २॥ ज्ञानीले हैं चतुरजे हैं विचक्षणजे तिनहींलौ जेई लोग हैं अर्थात् सूक्ष्म ते.सूक्ष्म ताहूतेसूक्ष्मलौबिचारनवारे बेअद्वैतबादी सबलोग ते एक जो ब्रह्म ताहीमें सयानजे भये कि, मैंहीं ब्रह्महौं यही मानतभये तो वे सयान नहीं हैं॥१॥दूसर सयानजे दैतवादी हैं ने साहबको औ आपनेहीको मानै हैं ताको तौ मरमई नहीं जाने हैं। भूलिकै उत्पति परलै कहे संसारकी जो उत्पत्ति प्रलय होतरहै है ताहीमें सैन । बिहाना कहे दिनराति जनमतमरतरै हैं ॥ २ ॥ बाणिजएकसवनमिलिठाना । नेमधर्मसंयमभगवाना ॥३॥ हरिअसठाकुरते जिनजाई। बालनभिस्तगाँवदुलहाई ॥४॥ |, एक वणिज तब मिलि ठानतभये नेम धर्म संयम इत्यादिक ने सब साधनहैं। तिनहींको भगकहे ऐश्वर्यं मानिकै तिनमें सब लागतभय॥३॥हरिकहे आरतके हरनहारे ने साहब हैं तिनते जिन नाइकहे जेजेफरकद्वैगये ते बालनकहे बालककी ऐसी हैं बुद्धि जिनकी ऐसे जेजीव ते भिस्तगाँव दुलहाई कह भिस्त जोस्वर्गहै