पृष्ठ:बीजक.djvu/१६८

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( ११८ )
बीजक कबीरदास ।

(११८) वीजक कबीरदास । अथ बयालीसवीं रमैनी । | चौपाई।। जबहमरहल रहानहिंकोई। हमरेमाहँरहलसवकोई ॥१॥ कहहुसोरामकवनतोरसेवा सोसमुझायकहोमोहिंदेवा ॥२॥ फुरफुरकहउँ मारुसवकोई । झूठे झूठा संगति होई ॥३॥ आंधर कहै सवै इमदेखा तहँ दिठियारपैठिमुँहपेसा ॥४॥ यहिविधिकहौमानुजोकोई। जसमुखतसजोहृदयाहोई॥५॥ कहहिं कबीरहेसमुकुताई । हमरे कहले छुटिहौभाई ॥ ६॥ जबहम रहलुरहानहिंकोई । हमरेमाहँरहलसवकोई ॥१॥ कहहुसोरामकौनतोरसेवासोसमुझायकहोमोहिंदेवा ॥२॥ श्रीकबीरजी कहै हैं कि जबहम साहबके लोकमें रहै हैं तबतुम कोई नहीं रेहही तुमसब हमरे साहबके लोकप्रकाशमें रहेही ॥१॥ अपनेको रामत कहौहौ तुम्हारीसेवाकैौतहै कहां वेदपुराणमें लिखोहै कि इनकी सेवा किये मुक्तिहोइगी सो तुमदेवता बने फिरौहैं। परन्तु मोक्रो समुझायके कहतौ कौन मुनि तुम्हारी सेवा किया है काकी मुक्ति भई है ॥ २ ॥ फुरफुर कहउँमारुसब कोई । झूठेझूठासंगतिहोई ॥ ३॥ | जो कोई फुरफुर कैहहै तौ सब मारनधावैहै अर्थात् जो कोई कहैंहै कि तुम साचहौ साहबकेही तैौ मारन धावै है शास्त्रार्थ करि लैरै है काहेते लोकमें रीतिहै कि झूठेकी झूठेनसो संगतियॐ सो सांच जो जीव सो झूठामन उत्प- त्तिकरिकै झूठा जो धोखाव्रह्म ताहीके संग होत भये ॥ ३ ॥ आंधरकसबैहमदेखा । तहँदिठियारपैठिसंहपेखा ॥ ४ ॥ | साहबके ज्ञानते बिहीन जे आंधर हैं ते याक है हैं कि वेदशास्त्र पुराणमें अर्थ सबहमें ब्रह्मरूपई देखाहै जाके देखते सबको ज्ञान हमको द्वैगयो तामें