पृष्ठ:बीजक.djvu/१७३

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( १२३ )
रमैनी ।

रमैनी । (१२३) अथ पैंतालीसवीं रमैनी । चौपाई। हिरणाकुशरावणगये कंसाकृष्णगयेसुरनर मुनिर्वसा॥१॥ ब्रह्मा गये मर्म नहिं जाना। बड़ सबगोजोरहेसयाना ॥२॥ समुझिनपरीरामकीकहानीनिरवकदूधकिसरबकपानी ॥ रहिगोपंथ थकितभो पवनादिशौदिशाउजारिभोगवना॥४॥ मीनजाल भोई संसारालोह कि नाव पषाणको भारा॥८॥ खेवै सवै मरम नहिंजाना । तहिवो कहै रहै उतराना॥ ६॥ साखी ॥ मछरी मुखजस केचुवा, मुसवन मुहँ गिरदान ॥ सर्पनमा गहेजुवा, जाति सवनकी जान ॥ ७ ॥ हिरणाकुशरावणगयेकंसा। कृष्णगयेसुरनरमुनिबंसा॥ १॥ ब्रह्मागयेमरमनहिं जाना । वड़सवगये जोरहेसयाना॥२॥ | श्रीकबीरजी कै है हैं कि हिरणाकुश रावण कंस मरिजात भये औ इनती- नोंके मरवैया कालस्वरूप ने कृष्ण तेऊ मरजातभये दश अवतार निरंजन नारायणै ते होइ हैं या हेतुत मरिजानवारे तीनिकह्यो मारनवारो एकहींकह्यो औ सुर नर मुनि इनके बंशवारे तेऊ मरिगये औ ब्रह्मा आदिक ने बड़ेबड़े सयानरहैं वेङ वेदको तात्पर्य न जान्यो मरिगये ।। १ ॥ २ ॥ समुझिनपरीरामकीकहानी।निरवकदूधकिसरबकपानी ३॥ रहिगोपंथथकितभोपवना। दशौदिशाउजारिभोगवना॥४॥ रामकी कहानी कहे रामनामकी कहानि जो चारो बेदकहैहैं सो काहूको न समुझिपरी धौं निरबक दूधहीहै धौं पानिहीपानी है अर्थात् निनको परमपुरुष श्रीरामचन्द्र को ज्ञानभयो वेदको तात्पर्यबूझयो साहबमुख अर्थलगायो सोदूधही