पृष्ठ:बीजक.djvu/१७२

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( १२२ )
बीजक कबीरदास ।

(१२२) बीजक कबीरदास । कवहुँन भये संग औ साथा । ऐसो जन्म गैवाये हाथा॥३ | साहबके जाननवारे जे साधु तिनको सत्संगकबहूँ न कियो औ उनके बताये साहबको साथ कबहूँ न कियो जेहिते आवागमन रहित होय मनुष्य ऐसोजन्म अपने हाथते गमायदियो ॥ १ ॥ बहुरि न ऐसो पैहौथाना । साधुसंगतुम नहिपहिचाना॥२॥ अबतोरहोइनरकमॅवासा । निशिदिनपरेलवारकेपासा ॥३॥ | ऐसोस्थानकहे मनुष्यदेह तुम फेरि न पावोगे साधुसंग तुम नहीं पहिचन्योहैं साधुसंगकरो जो पूरागुरु पाइजाउगे तो उबार है जाइगो॥२॥धोखाजो है ब्रह्म औ माया ताके उपदेश करनवारे ने हैं गुरुवाळीग लवरा तिनके पास में निशि- दिन परयो है सो बिना पारिख तेरो नरकही मो बासहोइगो ॥ ३ ॥ साखी ॥ जातसवनकहँदेखिया, ककवीरपुकार ॥ चेतवाहोहुतचेतिले, दिव्सपरतहै धार ॥ ४ ॥ - दूनों ब्रह्ममयाके धोखा में सब को नरक देखिकै कबीर जी पुकारिकै | कहें कि चेतिबे को होइ तो चेतौ नहीतौ दिनैकै तिहारे ऊपर धारप कहे. गुरुवालोगनको डाकापै है भाव यह है जो गुरुवा लोगन को डाका तुह्मारे ऊपर परैगो औ वह ब्रह्म को उपदेश करेगो औ तुह्मारे वह धोखा दृढ़परिजा इगो तौ तुम मारेपरोगे कहे जैसे मरा काहूको फेरो नहीं फिरै है तैसे तुमहूं वह धोखाते काहूके फेरे न फिरोगे अर्थातकाहूको कहा न मानोगे तौ संसार- हीमें परेरहोगे बहुत बड़ेबड़े वही धोखाते ब्रह्ममंपरिकै मरिगये साहबको है. नानत भये सो आगेकहैहैं ॥ ४ ॥ इति चौवालीसवीं रमै समाप्ती ।