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पृष्ठ:बीजक.djvu/१८१

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( १३१ )
रमैनी ।

रमैनी। ( १३१) नैसी उसकी शकल है लेकिन बयान नहीं कर सक्ताहै। औ कुरान खोदाको कलाम कहैवात है जो वदन न होता तौ कलाम कैसे कहते। सो निराकार साकार के परे अकह जा साहब है ताकी रमैनी कहे तिसके रूपादि बर्णनकी कथा जबानमें किस तरहसे कहौ, बचनमें तौ आवै नहीं है । अथवा जाकर नामैंअकहुवाहै ताकारूप अकहुवा- बनैहै तिसकी कथाकहाँकहै । जोवाहूअकहुवा होयगी जो ऐसाभया तौ जानि न परैगो किसको मिथ्या होयनाइगो । तीनैको कबीरजी कहै हैं कि सबको हमको अकहुवा है कछु उसको साहबको कोई बात अकहुवा नहीं है हमताहीकी कही रमैनीगाइतेहै सजोकछुरमैनामेंलिख्याहै सो सांचही है ॥ १ ॥ कहै को तात्पर्य है ऐसा । जस पंथीवोहित चढ़िवैसा ॥२॥ हैकछुरहनिगहनिकी वाता । बैठारहाचलापुनिजाता ॥३॥ जौनकहि आये तैनेको तात्पर्य ऐसाहै कि पांचशरीरते साहब नहीं मिलैंहै। काहेते मनबचनके परैहैसाहव है औ जोहमसों साहब कहा कि जीवनको रमैनी उपदेश करौ ताको हेतुयह है साहब बिचारयो कि मनवचकेपरे जो मैंहैं सों विनामेरे बताये जीव मोको न जानेंगे जोकही साहबको कापरी है न जानेंगे नीवतौ साहबके दयालुताकी हानिहोइहै याते उपदेशकरै है हैं सो जौने कह रामनाम के जपेते साहब प्रसन्नद्वै हसरूपदेइदै तौने रामनाम रमैनी ते जानिहै। काहेते कि ॥ (इच्छाकरभवसागर वाहितरामअधार । कहहिं कविरहार शरणगडु गोबछखुर बिस्तार) ॥ ऐसी साखरनी में लिखी है तेहिते या अर्थ आया कि संसारसागर पारहवैको एक रामनामही जहाजमानि नामार्थ में जोशरणकीबि- धिहै ताको अनुसंधानकरत रामनामजपै ॥२॥ यहरहनि गहनिकैकै जैसे वछवा को खुरलोग उतर जायहै ऐसो संसारसागरमें रामनामको अभ्यासकै तारजाय हैं। कैसे जैसे नावकोचढ्या नावमेंबैठहै पै पारहोत जायहै ऐसे रामनामको जपैया संसारसागरमें बैठे देखो परेहै परन्तु पारको चलो जायहै ॥ ३ ॥ रहेवननहिंस्वागसुभाऊ । मनस्थिरनहिंबोलैकाऊ ॥ ४॥ इसतरहके जेहैं जिनकेबदनकहे संभाषण करिब ते जीवनको स्वागकोसुभाऊ कहे ब्रह्लह्वनावी चतुर्भुनादिकनके लोकमें जाइचतुभुज द्वेजाव और नानादेवतन्