पृष्ठ:बीजक.djvu/१८४

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( १३४ )
बीजक कबीरदास ।

(१३४) बीजक कबीरदास । साहब कहा समुझावैहै कि जैसो पूर्व कहिआये हैं ( नामार्थमें लिाख आये हैं। शरनकी विधि ) तैसो अनुसंधान करत रामनाम जपिकै निरंतर जे छठयें मास या होइतौ जो या शरीरते कैरैहै छामहीनामें दर्शन सो पावै। याही भांतिसों जो मोकोध्यावै तौ छठयेंमास मेरोदर्शन पावै कहे छठौ जो हंस स्वरूप तामें स्थिर हैजाय ॥ ३ ॥ तौ कौनिउभांतिसों मैं देखाइ देउहैं औ निशिदिन वाके साथ गुप्तरहिकै वाको सब सुभावलेउ औ जो दृढ़होइ तौ राम नाम कासाधक ताको छठौ शरीर के वाको प्रत्यक्ष लैजाउ पाछे २ रघुनाथजी नित्य बनेरहत- हैं तामें प्रमाण।। ( रामरामेतिरामेतिरामरामेतिवादिनम् । वत्संगौरिवगौयय- धावंतमनुधावति ) ॥ ४ ॥ साखी ॥ कहहिं कवीरपुकारिके, सवका उहै हवाल॥ | कहा हमरमानै नहीं, किमिछूटै भ्रमजाल ॥५॥ श्री कंवरजी पुकारकै है हैं कि जिनको शेष शिंवादिकने पारनहीं पायो यह भांतिके दुर्लभ जे परम पुरुष श्रीरामचन्द्र हैं ते आजुकाल्हि ऐसे सुलभहै। गयेहैं कि आपई उपाय बतावै हैं कि जो ऐसो उपायकरैं तो छठवें शरीर में मोको पाइजाईं ते साहबको कह्यो मैं कतनो समुझावतह पै सब बेवकूफ हैं। जीवन को हवाछ उहैं है कहे वहीं मायाके नानामतनमें लगेहैं वहीको बिचार करैहैं जौन धोखाते संसार पायहै हमारो कहो यतनेहूपै नहीं मानैहै सो ऐसे दुष्ठ जीवनको भ्रमजाल कैसेछूटै ॥ ५ ॥ । इतिबावनवीं रैंमैनी समाप्ती । अथ तिरपनवीरमैनी। चौपाई। महादेव मुनि अंत न पावा । उमासहित उन जन्म गैवावा उनते सिद्ध साधु नहिंकोई । मन निश्चल कहु कैसेहोई २॥ जो लग तन में आई सोई । तौलग चेत न देखौ कोई॥