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रमैनी। | ( १६५) जल मिालकै एकै छै नायहै। हितुवा वहकहवै है । जो रक्षा करै ये तो दूनों एकई & रहे ब्रह्म में लीनहोइ पुनि जब सृष्टिसमय भई तब माया धरिलै आवै है तब ते दूसरो यह मानते नहीं है मैं काको हितुवां बताऊं जो मायाते रक्षा करिलेइ औ जोसाहब हितुवामानै रक्षकमानै ती साहब याको हंसस्वरूप देकै आपने पास बोलाइलेइ इहांमायाकीगति नहीं है तो पुनिधरिके जीवको संसारी कैसे करै है?॥७॥ इति इकहत्तरवीं रमैनी समाप्ती ।। अथ बहत्तरवीं रमैनी। चौपाई। । नारि एक संसारै आई । माय न वाके बाप न जाई ॥१॥ गोड़ न मूड़न प्राणअधारा । तामें भरमि रहा संसारा ॥२॥ दिना सातौं वाकी सही। बुधअधबुधअचरजयककही॥३॥ वाहिकिबन्दनकरसवकोई।बुधअधबुधअचरजवड़होई॥४॥ | एक नारि जो यह मायौ। सो संसार में आवतभई न वाके मंहतारी है आने वह बापते उत्पन्नहै अर्थात् अनादिहै ॥ १ ॥ अरु न वाके गोड़हैं न मूड़ है न प्राणहै न आधार है अर्थात् निराकारहै भर्मइहै ताहीमें संसार भरमिरह्यो है॥२॥ औं सातो जे बारेहैं दिन तिनमें वही मायाकी सहाहै अर्थात् कालमें वही अमिसीहै औ सातबार वोई फिरि फिर वैहैं वही मायाको चारोंओर बिस्तारैहै। बुधजाहै पण्डित निर्गुणवारे जे सारासारकेबिचारकारकै आपहीको ब्रह्ममानहैं। औ अधबुधजेहैं आधेपण्डित सगुण उपासनावारे सो ये दूनोंमें आश्चर्य्य जोहै। माया ताको एक कहैहैं दूनों में यह माया बरोबार व्याप्त है ॥ ३ ॥ श्रीकबीरजी कैहहैं कि यह बड़ो आश्चर्य्य है तौ कछुनहीं है औ वही मायाकी बन्दना निर्गुणसगुणवारे दोङकरैहैं जो मन बचनमें अवैहै सोमायाहीहै ॥ ४ ॥ इति बहत्तरवीं रमैनी समाप्ती । .