पृष्ठ:बीजक.djvu/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

रमैनी ।। ( १७३) अथ छिहत्तरवीं रमैनी।। चौपाई ।। | मायामोह कठिनसंसारा। यसैबिचार न काहु विचारा॥१॥ मायामोह कठिनहै फंदा। होय विवेकी सो जन बंदा ॥२॥ रामनाम लै वेराधारा । सो तें लै संसारहि पारा ॥ ३ ॥ साखी ।। रामनाम अति दुर्लभ अवरे से नहिंकाम।। आदि अंतं औ युगयुगै रामहिंते संग्राम ॥ ४ ॥ मायामोह कठिनसंसारा । यसै बिचारनकाबिचारा ॥१॥ | मायामोह रूपते संसारको देखै है कहे नानापदार्थ भिन्नदेखै है याहीते संसार कठिन है यामें व्यङ्ग यह है कि, जो संसारकोभगवतचिदचिद् विग्रहरूप करिके देखें तो संसार उतरजायबे को सरलै है सो यह बिचार कोई न विचारय ॥ १ ॥ मायामोह कठिनहै फंदा । होय विवेकी सोजनबंदा ॥२॥ अरु कह संसारमें मायामोहरूप कठिन फन्दा है जो संसार में सब भिन्न भिन्न पदार्थ देखै है तैौने संसार कोई भगवचिदचिद विग्रहरूप देखै औ बिवेकी होइ सोई जन साहबको बन्दा है ॥ २ ॥ राम नामलै बेरा धारा । सो हैं लै संसारहि पारा ।। ३ ॥ औ रामनाम जो हैं बेरा ताको आधारलेकै जो कोई साहबको जान्यो है। ताको उबार द्वैगयो है सो तेंहूं रामनामजाहै बेरा ताको आधारले कहे रामनाममें आरूढ़हो साहबको जानु तौ औं संसार समुद्रको पार लैजाय ॥ ३ ॥ साखी ॥ रामनाम अति दुर्लभै, अवरेसे नाहिं काम ॥ आदि अंत औ युग युगै, रामहिते संग्राम ॥४॥ श्रीक बीरजी कहै हैं कि यह रामनाम अतिदुलभहै मोकाऔरे से काम नहीं