पृष्ठ:बीजक.djvu/२२४

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( १७४) बीजक कबीरदास । है आदि अन्तमें औ युगयुगमें मोसों रामैते संग्राम कहाहै कि शास्त्रार्थ करके। रामनाम में जो जगतमुख अर्थहै ताकखण्डन करिकै अतिदुर्लभ जो साहब । मुख अर्थ ताकग्रहणकरौह अर्थात् जबजगत्की उत्पत्ति नहीं भईहै तब औ युगयुगन में कहे मध्यमें अन्तम कहे जब मुक्तद्वैगयो तबहू रामनामहीते संग्रामकियो है अर्थात् रामनामको बिचार करत रहौहौं ॥ ४ ॥ | इति छिहत्तरवीं रमैनी समाप्ता ।। अथ सतहत्तरवीं रमैनी। चौपाई। एकैकाल सकल संसारा । एकै नामहै जगत पियारा ॥१॥ तियापुरुषकछुकथो न जाई । सर्वरूप जग रहा समाई॥२॥ रूपअरूपजाय नहिंवोलीहलुकागरुआजाय न तोली॥३॥ भूखनतृषाधूप नहिंछाहीं । दुखसुखरहित रहैत्यहिमाहीं॥४॥ साखी ॥ अपरम परम रूपमगुरंगी,नहित्यहि संख्याआहि॥ । कहहिं कवीर पुकारिकै, अद्भुत कहिये ताहि ॥॥ एकै काल सकल संसारा।एकै नामहै जगतपियारा ॥ १ ॥ एक जाहै लोकप्रकाश ब्रह्म ताके अनुभव करिके जाब्राह्मण मानिलेइहै। सोई माया सवलित हैबोहै सोई काल सकल संसार में है सो जगत् को पियार एक जोहै रामनाम ताको बिनाजाने याही ते जन्ममरण होइहै ॥ १ ॥ तियापुरुषकछुकथौनजाई । सर्वरूप जग रहा समाई ॥२॥ रूपअरूपंजायनहिबोली।हलुकागरुआजायनतोली ॥३॥ भूखनतृषाधूपनहिंछाहीं । दुखसुखरहितरहैत्यहिमाहीं ॥४॥ वह माया सबलित ब्रह्मक स्त्री न कहिसकै न पुरुषकाहिसकै सर्वरूप वैकै संसार में समाइ रह्या है॥२॥ वाको न रूप कहिसकै ॐ न वह हलका गरुआ