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पृष्ठ:बीजक.djvu/२३३

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रमैनी । (१८३) अथ तिरासवीं रमैनी। | चौपाई। क्षत्री करै क्षत्रियाधर्मा । वाके बढ़े सवाई कर्मा ॥ १ ॥ जिन अवधू गुरुज्ञान लखाया।ताकरमन तहँई लैधाया॥२॥ क्षत्री सो कुटुम्ब सों जूझै । पांचौमॅटि एककार बूझै ॥३॥ जीवहिमारि जीव प्रतिपालै।देखतजन्म आपनो घालै॥४॥ हालै करै निशाने घाऊ । जूझिपरे तहँ मनमत राऊ ॥६॥ साखी ॥ मनमत मरें न जीवई, जीवही मरण न होई ॥ शून्य सनेही रामबिन, चले अपनपौ खोइ ॥ ६॥ | क्षत्री करै क्षत्रिया धर्मा । वाकेबढ़े सवाई कर्मा ॥ १ ॥ जिनअवधूगुरुज्ञानलखाया । ताकरमनतहँईलैधाया ॥२॥ क्षत्री सो कुटुम्बसों जूझै । पाँचों मैटिकल करिबूझै ॥३॥ | जैसे क्षत्रिय क्षत्रियाधर्मकरे हैं तो वाके सवाई कर्मबढ़हैं रणमें पैठिकै शत्रुन • को मारिकै शूरतारूप कर्मबढ़हैं ऐसजीव यह क्षत्रिय हैं क्षत्रिय जे साहबहैं। तिनकी जाति है सो संसाररणमें पैठिकैमन माया धोखाज्ञानई शत्रुमारि साहबके मिलनरूप शूरताबदै है ॥ १ ॥ जे अबधूकहे बधू जो माया त्यहिते रहित रामोपासक जेसाधुते गुण जे साहबहैं तिनको ज्ञान जाको लखायो है ताको मनतहँई लय भयो मनोनाश बासना क्षयगई जब मनोनाश भयो तब धाया कहे हंसरूप में स्थित है साहबके पास को धावत भयो । २ ॥ क्षत्रियसोहै जो कुटुम्बसों जूझै कुटुम्ब याकेकाहै पांचौशरीरतिनको मेटिकै एक जो है हंसस्वरूप त्यहिकरिकै साहबकोबूझै ॥ ३ ॥ जीवहिमारिजीवप्रतिपालै। देखतजन्मआपनोधालै ॥४॥ हालै करै निशाने घाऊ । जूझिपरे तहँ मनमतराऊ ॥६॥ | जीवहि मारिकै कहे जो औरै औरे को जीव है रह्योहै आपने को ब्रह्ममानै है।