पृष्ठ:बीजक.djvu/२५७

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शब्द । (२०७) ब्रह्ममें कहियेहै ते, उनकी उपासना करिके उनको आपनेते अभेद मानि कै उनकी शक्ति को प्राप्ति बँकै जगत्के कार्य सब करे । औ जब मत्स्यादिक अवतारलेई हैं तब जे साकेत मत्स्यादिक हैं तिनकी अभेद भावना करिकै उतने अवतारकी शक्ति पाइकै आपही मत्स्यादिक होइहैं ये सब साकेतमें जे नारायणादिक सब तिनके उपासक हैं उपासनामें देवको औ अपनो अभेद मानिव लिख्या है ॥ * देवभूत्वादेवयजेत् ॥ तेहिते उनकी शाक्तते ये सवअवतार लेइहैं । जोकहो यामें कहा प्रमाणहै कि, येसब उनहींके उपासकहैं । तो रामनामके साहब मुखअर्थमें मकार स्वतःसिद्ध सानुनासिक है। ताको जो है मात्रा तौने में साहबके ने सब पार्षद हैं तिनको वर्णन कारआये हैं । ये सव नारायणादिक रामनामहीकी उपासनाकरै हैं सो जाकी जाकी उपासना कीन चाहै हैं ताकी ताकी उपासना रामनामहीमें है जाये है रामनामकी ये सव उपासनाकरे हैं तामें प्रमाण ।। * नारायणःस्वयंभूश्चशिवश्चेन्द्रादयस्तथा । सनकाद्याश्च योगीन्द्रनारदाद्यामहर्षयः ॥ सिद्धाः शेषाद्यश्चैवलोमशाद्यामुनीश्वराः । लक्ष्म्यादिशक्तय:सर्वोःनित्यमुक्ताश्चसर्वदा ॥ मुमुक्षवश्च मुक्ताश्चऋषयश्चशुकादयः । तत्प्रभावंपरंमत्वामंत्रराजमुसैते ॥ इतिवसिष्ठसंहितायाम् ॥ ' जो कहा ये सब रामनाममें साहबमुख अर्थ तौ जान्य मायिक काहेभयो ? तौ बिना माया सबलित भये जगत् के कार्य नहीं है सकै हैं तेहिते ये सब माया सबलित वैकै कार्यकरै हैं । परन्तु जैसे इतर जीवनके जन्म मरण होई तैसे इन के नहीं होइहैं । जब महाप्रलयभई तब सबनीव साहब के लोक प्रकाशमें समष्टिरूप रहै हैं जव उत्पत्तिभई तबफिरि कर्मकरिकै उत्पत्तिहोइहै । औ ये सब नारायणादिकनकी उत्पत्ति प्रलय नहीं होइ है । काहेते कि ईश्वर हैं, जब महाप्रलयभई तब जे साकेत लोकमें नारायणादिक हैं ते, इनके अंशी उपास्यहैं तहां लीन द्वैकै रहेनाइहैं । उत्पत्ति समयमें समष्टि जीव व्यष्टि होन चौहहैं तब राम नाममें जगत् मुख अर्थको भावना करै है, तब साके निवासी जे नारायण हैं तिन्हें तिनके अंशई सब पांच ब्रह्मरूपते प्रकट होइहैं । साकेतमें ने नारायणादिकहें ते अमायक हैं, औ तिनके अंश नारायणादिक मत्स्यादिक अवतार लैकै आवै नाय हैं ते माया सबलित हैं । सो ये सब