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पृष्ठ:बीजक.djvu/२५८

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( २०८) बीजक कबीरदास । मत्स्यादि अवतारनको मायिक कहिकै कबीरजी साहब को परत्वदेखावहैं कि साहब सबते भिन्न हैं ।

संत आवै जाय सो माया । | है प्रतिपाल काल नहिंवा नाहिं कहुं गया न आया ।।१॥

हे संतो! आवैजायहै सो तो मायाको धर्म है।जे साहब परम परपुरुष श्रीराम चन्द्र हैं ते सबको प्रतिपालही भर केरै हैं कहे उद्धार ई भर करैहैं औ काम नहींकरै हैं । उनके कालनहीं है अर्थात् प्रलय आदिक नहीं होइहै । अथवा जो कोई वे साहब को जानै है ताको कालको भय छुटिजायहै वे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र ना कहीं गये हैं न आये हैं ॥ १ ॥ क्या मकसूद मच्छ कच्छ होना शंखासुर न सँहारा । अंदयालु द्रोह नहिं वाके कहौ कौनको मार ॥२॥ वे कत्त न वराह कहावें धरण धेरै नहिं भारा ।। ई सव काम साहब नाहीं झूठ कहै संसारा ।। ३ ।। “अरु वे उद्धारकर्ता परमपरपुरुष श्रीरामचन्द्रको क्या मकसूद कहे क्या मकसद हैं अर्थात् क्या प्रयोजन है, मच्छ कच्छ होनेका । वे शंखासुरको नहीं संहारयाहै शंखासुर उपलक्षण याते जिनको जिनको मारयो है अवतारते सब आइगये । अरु सो दयालु हैं सबकी रक्षाकरै हैं उनके द्रोह नहीं है कहौ कौनको मारया है ॥ २ ॥ अरु वे उद्धारकर्त्त साहब वाराह नहीं भये है न पृथ्वीको भारा धरये सो जौन सबकई कहै हैं कि, ई सब काम साहबहके हैं सो ये काम साहब के नहीं हैं यह संसार झूठई कहैं है सो साहबको बिना जाने खम्भ फारि जो वाहरहोई ताहि पतिज सब कोई । हिरणकशिपु नख उदर विदारे सो नहिं कत्ती होई॥४॥