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पृष्ठ:बीजक.djvu/२५९

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शब्द । ( ३०९) बावनरूप न वलिको यांचे जो यांचे सो माया । विना विवेक सकल जग जड़े माया जग भरमायाः औ खम्भ फारिकै बाहर है कै नरसिंह रूप है नखते हिरणकशिपुके उदरको विदारये है तैनेन व्यापक ब्रह्म को सबकाई पतियायहै सो वे उद्धारकर्ता परमपुरुच श्रीरामचन्द्र नहीं हैं। यह सब माया किया है ॥ ४ ॥ औ वावनरूप है वे साहव वलिको नहीं यांच्या है। मांगो पाइजो तो सब माया है। सब जगत् के जीव विना विवेक जहड़े कहे भुलाय गये हैं । सब जीवनको माया भरमाइ लिया है ॥ ५ ॥ परशुराम क्षत्री नहिं मारा ई छल मायहि कीन्हा । सतगुरु भक्ति भेद नहिं जानै जीव अमिथ्या दीन्हा॥६॥ अरु वे उद्धारकर्ता परमपरपुरुष श्रीरामचन्द्र परशुराम है क्षत्रिन को नहीं मारयों है यह सब मायाही किया है । सतगुरु कहे सैकरन ने गुरुवा हैं ते साहवके भक्तिके भेदको जानै नहीं हैं । जीव को ये जे नारायण हैं औ सब जे अवतार हैं तिनही को अमिथ्या कहे मिथ्या नहीं सोच कहिँकै कि, वे सांच साहब येई हैं तिनही की जीवन को दीक्षा देइ है । सो मिथ्या है ॥ ६ ॥ सिरजनहार न ब्याही सीता जल पषाण नहिं बंधा । वे रघुनाथ एकके सुमिरे जो सुमिरै सो अंधा ॥७॥ औ वे सिरजनहार कहे जाके सुरातिदियो ते, ब्रह्मा विष्णु महेश आदिक अवतार लेइहैं औ जगत्की उत्पत्ति होइहै सो सीता को नहीं बिवाह्यो, औ सेतु नहीं बांध्यो । सो वे निर्विकार उद्धारकर्त्ता रघुनाथको औ ये सब अवतारनको एक करिकै सबकोई सुभिरै हैं । सो नो एक करिकै सुमिरै हैं। ते अंधे हैं । काहेते कि, वे तौ रघुनाथ हैं । रघु कहिये सब जीव को तिनके नाथ हैं वे काहेको काहू के मारनको अवतार लेईंगे । वे निर्विकार औ ये माया सबलित वैकै सब अवतार लेइ हैं । जो कोई आवेनाय है सो मायिक सो वे निर्विकार साहब औ सविकार ये सब अवतार एक कैसे होईंगे । आ