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। { २२० ) बीजक कबीरदासं । ध्रुव प्रह्लाद विभीषण माते माती शिवकी नारी । सगुण ब्रह्म माते वृन्दावन अजहुं न छूटी खुमारी ॥५॥ सुर नर मुनि जेते पीर औलिया जिन रे पिया तिनजाना। कहै कबीर गूगेकी शकर क्यों कर केरै वखाना ॥ ६॥ संतो मते मात जन रंगी। पीवत प्याला प्रेम सुधारस मतवाले सतसंगी ॥ ३ ॥ संते मते कहे संतनके जेमतहैं जिनमें रंगेने जनहैं तेईमात कहे मातिरहे हैं। "रंगच्छतीतिरंगः रंगोस्यास्तिगुरुत्वेनेतिरंगी?' रकार बीजको जो कोई प्राप्त होई है सो रंग कहाँसो रकार बीज रामापासकनके होइहै।ते रामोपासक जाके गुरुहोइ सोकहावैरंगी । अथवा सुति कमल वैठे जे परम गुरु ते रकार बीजको उच्चार करै हैं, सो रकार वीजको जो कोई वहां जाइकै सुने सो रंगहै।सोई रंगी संतनके मतमें माते है । औ कबीरऊ रकारई बीजक जपत रहै हैं सोवंशावलीमें लिख्ये है।श्रीराजारामसिंह बवाकबीरजीते पूछये कि आपका कौन सिद्धांत है तब कबीरजी कह्यः ॥ * रा अक्षर वट रम्या कबीरा।निज घर मेरो साधु शरीरा ॥ सो पीछे लिखआये हैं । अरु सुधाको मादकधर्म है सो श्रीरामचन्द्र के प्रेमरूपी प्याङमें भरयो जो है सुधारसरूपा भक्ति ताको जे पानकरै हैं तिनके सत्संनी जे हैं तेऊ मतवाले वैज्ञायतें कहेपरम सिद्धांतवाळा जो मत है तेहि ते युक्त वैजाइहैं । अथवा रसरूपा भक्तिको नशा चढ़ोर है दिनराति अर्थात् रस आनन्दको कई हैं सो आनन्दमें निमग्नरहै हैं तामें प्रमाण ॥ ** रसोवैसःरसेसेवायंलब्ध्वानन्दीभवति ॥ इतिश्रुतेः इहां सुधारस को कह्यो ताको हेतु यह है कि जे सुधारसको पीते हैं तेई जनन मरण छोड़िॐ अमर होयहैं औरनको जनन मरण नहीं छूटै है अरु वह रसरूपा भक्ति मधि उत्पत्ति भयो है ताको रूपक करिके समुझावै हैं ॥ १ ॥ अर्ध ऊर्ध्व लै भाठी रोपी ब्रह्मअगिनि उदगारी। मूंदे मइन कर्म काट कसमल सतत चुवै अगारी ॥२॥