पृष्ठ:बीजक.djvu/२८१

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शब्द।
( २३१ )

अथ सोलहवां शब्द ॥ १६॥ रामरा झीझी जंतर वाजै । कर चरण विहूनाराजै॥१॥ कर विन वाजे श्रवण सुनै विन श्रवणै श्रोता सोई ।। पाटन स्ववश सभाविनु अवसर बूझौ मुनि जन लोई॥२॥ इन्द्रिय विनु भोग स्वाद जिह्वा विनु अक्षय पिंण्ड विहूना। जागत चोर मंदिर तहँ मूसै खसम अछत घर सूना ॥३॥ बीज विन अंकुर पेड़ विनु तरुवर विनु फूले फल फलिया। वांझ की कोखि पुत्र अवतरिया बिन पग तरुवर चढ़िया४॥ मसि विनु द्वाइत कलम विनु कागज विनु अक्षर सुधि होई। सुधि विनु सहज ज्ञान विन ज्ञाता कहै कबीर जन सोई ॥२॥ पूर्व मायाको बर्णनकरिआये तौनी मायाते टिके जौने उपाय ते साहब को पावै है सो उपाय है हैं ॥ रामरा झीझी जंतर वाजै । कर चरण विहूना राजै ॥ ॥ हे जीव! राम कहे रकार तोको मरौह अर्थात् रकार बीज को तोको अभाव है याहीते हैं अपने को ब्रह्म मानिके संसारी है गयोहै । झीझकहावै झिझिया ने कुवार शुक्लचतुर्दशीको अनेक छिद्रकै जो मटुकी होयहै ताके मध्यमें दीप बारिके धरैहै सो झिझियानांव देढियाको कबि संप्रदायहूमे है ।। ( रंध जाल मग है कट्टै तिय तन दीपति पुंज । झिझियाके सो घट भयो दिनंहूमें बनकुंज ) ॥ (सारीमूलामलसी फलकांति झरोखन की झझरी झिझियासी ) सोझिझिया रूप नव दुवारको । अथवा रोम रोम में छिद्र है जामें वोई छिद्रन लै पसीना निकसैहै यहिप्रकारको झींझी जॉहै शरीर तौनेजन्तरवाजै है कहे ताहीको यह सोह शब्दहै काहेते कि, श्वासा कैहैहैं सोवहीश्वासके कहेते करचरण विहून जो निराकार ब्रह्लहै सो तेरे आगैरानै कहे शोभित होन लग्यो । अथवा आंखिन के आगे नाचन लग्यो, सर्वत्र ब्रह्मही देखि परनलग्यो । अथवा तेंहीं करचरण