सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बीजक.djvu/२९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(२४२) बीजक कबीरदास । तिनमें पांच मुकाम मुसल्माननके कहै हैं औ पांचमुकाम छोड़िदेइहैं तिनको उनहींमें गतार्थ मानिलेइहैं । मुसल्माननमें वाई पांच मुकामके दुइनाम ** नासुतको आलम अजसामकहे शरीरधारी । यात यहलोकके सव आइगये औ मलकूत को ' आलम मिसाल फिरिस्तनकै दुनिया देवलोक औ जबरूतको आलम अर्थात् कहे पृथ्वी अप तेज बायु तत्त्वरूपैहै : औ लाहूतको आलम कई कहे नूर अर्थात् श्रीकृष्णको मुख्यप्रकाशजाहै ब्रह्म वहीको कही लोकप्रकाश लिख्याहै औ * हाहूतको मुकाम महम्मदीकहे जहांभर महम्मद पहुंचे है ? श्रीकृष्णके लोक अब इनके मंत्रऊ लिखे हैं। जिकर नासूत “लाईला हइलाहू निकिर मलकूत “इल्लिलाहू' जिकिरजवरूत “अल्लाः अल्लाः' जिकिरलाहूत अल्लाह निकिरहाहूत ‘‘हूंहूं ॥ सोइनको रातिदिन पांचहजारबार जपकरै । जब पांचहजारहाय तबध्यानकरै औध्यान में गड़े और आपको भूलै फिरजहानको भूलै पुनि जिकिर कहे मंत्रको भूलै तब क्रमते मजकूरको पहूंचे अर्थात् अल्लाहीने श्रीकृष्णचंद्र हंसस्वरूप देईं तामें स्थित बैंकै जिनको प्रकाश निराकार जो हैं ऐसेजे श्रीकृष्ण तिनकेपास होत उनके बताये मन बचनके परे ने खुद खाबिंदु सबके बादशाह जे श्रीरामचंद्र है तिनके पास जाताहै । सो यह मत महम्म दने साहबके बंदे हैं तिनको साहब भेजा। तब जे साहसके पास पहुंचनवारे रहे। तिनको महम्मद भेद वताइदियो। सो बिरले कोई कोई यह भेद जानै हैं जै जाने हैं। ते साहबके पासपहुंचे हैं। अब याको क्रम बतातें हैं नौनी भांति साहबके पास पहुंचे तामें प्रमाणपीरानपीरसाहक्के पासपहुंचे ऐसेजेहैं सलोलके मालिक पनाह अता तिनको कवित्त ॥ ‘‘देह नासूत सुरै मलकूत औ जीव जबरूतकी रूह बखनै । अरबीमें निराकार कहै जेहि लाहुतै मानिकै मंजिल उनै॥आगे हाहूत । लाहूत है नाहूत खुद खाविंद जाहूतमें जानै । सई श्री रामपनाह सब जगनाह पनाह अता यह गाने॥१॥दोहा॥तनै कर्मनासूतलहि, निरखै तब मलकूत । पुनि जबरूत छोड़िकै, दृष्टि पैरै लाहूत ॥ २ ॥ इन चारोंत नि आगेही, पना अता हाहूत। तहां न मेरै न बीछेरै,जात नतहँ यमदूत ॥३॥ “जलजलालअव्वल एकराम मुसलमानोंके है हैं किताबनमें प्रसिद्धहै साहब बुजुर्गका साहब बख्शीश का अर्थात् वह सबते बुजुर्गी कहे बड़ा है उससे बड़ा कोई नहीं