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"शब्द । (२४१) ष्टी ताके रोमरोममें अतंतकोटि ब्रह्माण्ड हैं। तहँते अनेक ब्रह्माण्डकी उत्पत्ति होइ हैं औ त महाप्रलयमें लीन होइ हैं औ दूसरे सत्यलोकमें जो महाशम्भुका वर्णनकियो सो परमगुरुको रूपहै । तामें प्रमाण ॥ “वदेशंभुजगद्गुरु गुरुसों औ साहबसों अभेदतामें प्रमाण है ॥ * आचार्यमांविजानीयान्नावमन्येतकहिँचित् इतिभागवते ' है महाशंभुसों औ महाविष्णुस अभेदहै तामेंप्रमाण * शिवस्यश्रीविष्णोर्यइह गुणनामादिसकलं धिया भित्रं पश्येत् स खलुहरिनामाहितकरः ॥ इति स्कंदपुराण ॥ ' औ नारायण ने वर्णन करिआये तेऊ श्रीरामचन्द्रईके रूप तामे प्रमाण ॥ सदाशिवसंहितायाम् ॥ * वासुदेवो घनीभूतं तनुतेजो महाशिवः ॥ ॐ गोलोकमें श्रीकृष्णरूपते रघुनाथजी विहारकरै हैं औ गोलोकके मध्यसाकेतमें रामरूपते रघुनाथजी विहारकरै हैं नामेंप्रमाण सदाशिवसंहिताके बिस्तारते बन करिआये कि, पश्चिमदार बृन्दाबन है, उत्तुरद्वार जनकपुर है, पूर्वद्वार आनंदवन है, दक्षिणदार चित्रकूट है ताकेआगे यहलोक है तेहिते इहां प्रयोजनमात्र लिख्या है ॥ ** तेषांमध्ये पुरंदिव्यं साकेतमितिसंज्ञकम् इति ॥ ' है साकेत ऊपर कछु नहीं है औ साकेत औ अयोध्या सत्यासत्य लोक इत्यादिक नाम सव वही लोकके पर्य्याय तामेंप्रमाण। ‘साकेतान्नपरेकिंचित्तदेवहिपरात्परम् ॥ औ गोलोकजे श्रीकृष्णचन्द्र हैं तेईश्री रामचन्द्रईके महत्॥“सीतारामात्मकं युग्मंपाविशन्नतिपूर्वकम्॥१।। श्रीजानकीजी श्रीरघुनाथजीसों कह्यो कि, वृन्दावनको बिहार करिये, तब रघुनाथजी कह्यो जब तुम कह्यो तें एक दूसरा बिहारस्थल बनाइये तब हम वृन्दावन बनायो, राधिका तुमभई कृष्णहमभये। सो बिहार करते भये सो हमारई, तुम्हाररूप राधाकृSणहैं । यो कहिकै आकर्षण करिकै बृन्दाबन बोलाइलियो । राधाकृष्ण आइगये तब राधिकानी जानकीनीमें लीनभई श्रीकृष्णचंद्र रामचंद्रमें लीनभये । अरु पुनि बिहारकियो जव बिहार करिधुके तब जानकी रघुनाथ ते निकसिकै बृन्दा बन समेत राधाकृष्ण चलेगये गेलोकको । सो यह कथा शुकसंहितामें है ताके एक श्लोक लिख्यो है औ विस्तारसे देखिलीनियो । तेई श्रीकृष्णके नखके प्रकाश ब्रह्म है वहीप्रकाशको मुसल्मान लामकान है हैं । ॐ जे दशमुकाम रेखतामें कहिआये औ दश वोई मुकाम.. सदाशिवसंहितामें बर्णन करिआयें ..