पृष्ठ:बीजक.djvu/३२१

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शब्द । ( २७१ ) | श्रीकवीरजी हैहैं कि हिंदूतो वोकरा मारिके मुसल्मान गायमारके नानाप्रकारके बाद विवाद करके अथवा बाँदैकहे वृथाही दोऊ भूलिके जन्म सँवाइ दियो परमपुरुष पर ने श्रीरामचन्द्र तिनको न पावत भये हिन्दू तुरुकके खुदखाविंद एकई है कोई विरले जाने ते वहां पहुंदै तामें प्रमाण झूलना । ‘छोड़ि नासूतमलकूत जवरूत लाहूत हाहूत बानी । और साहूतराहूत इहांडारिदेकूद आहूत जाहूत जाजी ॥ जायजाहूतमें खुद्द खाविंद जहँ वही मक्कानसाकेत साना । कहै कब्वारह्वां भिस्त दोजख थके वेदकीताबकाहूतकाजी ॥५॥ | इति तीसवां शब्दसमाप्त । अथ इकतीसवाँ शब्द ॥३१॥ हंसा संशय छूरी कुहिया । गैया पियै बछरुवै दुहिया घरघर सावज खेले अहेरा पारथ वोटा लेई । पानी माहिं तलफिग भूभुरि धूरि हिलोरा देई ॥२॥ धरती वरसै वादल भीगै भीटभया पैराऊ। हंस उड़ाने ताल सुखाने चहले बीधा पाऊ॥३॥ जौ लगि कर डोलै पगु चलई तौलागि आश न कीजै । कह कबीर जेहि चलत न दीखे तासुवचन का लीजै॥४॥ हंसा संशय छूरी कुहिया । गैया पिये वछरुवै दुहिया घरघर सावज खेलै अहेरा पारथ वोटा लेंई। पानी माहिं तलफिगै भूभुरि धूरि हिलोरा देई ॥२॥ कबीरजी कहै हैं कि हे हंसा? संशयरूप छूरिते मारिगया तोको उलटों ज्ञान है गयो । बछरुवा जो है तेरोस्वरूप और ज्ञानरूप जो है दूध ताको गैया जो माया सो दुहिकै पीलियो ॥ १ ॥ सावन जो या मनहै सो घरघरमें कहे शरीर