पृष्ठ:बीजक.djvu/३३०

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है (२८०) बीजक कबीरदास । ठगि ठगि मूल सवनको लीन्हा । राम ठगौरी विरलै चीन्हा कहकवीर ठगसो मनमाना। गई ठगेरी ठग्इ पहिचाना॥५॥ हरिठगजगतठगौरीलाई । हरिवियोगकसजियडु रेभाइ॥१॥ हरिठग कहे हरिरूप द्रब्यके वोरावनहारे गुरुवालगते जगत् में ठगौरी लगाइकै कहे उपदेश करिकै जीवको ठगि इहैं और और में लगाइकै सो हेजीबो ! हरिके बियोगते तुम कैसे जिऔहौ ॥ १ ॥ ॐककोपरुषकौनझनाही अथकथाय सञ्जालपसारी है। कोकाकोपुत्रकनकाकोवापा। कोरेमरै कोसों संतापा।।३।। | यहसंसारमें जवसांचे साहको भूल्ये तबको काको पुरुषको किसकी नारी है। अकथकथा कहे कहिवेलायक नहीं है काहेते कि जिनकी उपासना केरै हैं आपन स्वामीमोनहैं तिनके स्वामी कबहूँहोयहै वेई याकी नारीहोयहै दासहोइहै कबहूँ। स्त्री पुरुष होयह पुरुष स्त्रीहोयही सोयायमकहे दोऊविद्याऽविद्याके जालपसारया है ।। २ ।। कोकाको पुत्र कोकाकोबाप कोमेरैहै कोसंतापसहै तुम को तो सुखैसुखहै तुमही साहबहौ तुमहीं भोगीहौ ॥ ३ ॥ ठठिशि मूल सबको लन्हा। ठगी विरलै ईन्छ ४ कह कवीर ठगसो अन माना। गई ठगौरी ठग पहिचाना।।५।। । सो यह समुझाइ समुझाइ सव गुरुवालोग मूल ने है साहबको ज्ञानसो ठगिलेतभये । औजो यहपाठहोइ “ठगिठगि मँड़ सबनको लीन्हा तौ यह अर्थ है। किं, सजगंको ठगिठगि मुँड़ि लिया कहे चेलाकर लिया है । सो यहठगैरी जो रामकैपरिहै कि रामको ज्ञान सब जीवनको गुरुवालोग ठगे लेयहैं । जैसे कोई रुपया को कपड़ाको घोड़ाको ठगै है तैसे गुरुवालोग रामको ठगैहैं तामेंमाण-“शास्त्रसुवुद्धातत्वेन केचिदाबलाजनाः । कामदेषाभिभूतत्वादहंकारवशंगताः ।। याथातथ्यंचविज्ञाय शास्त्राणांशास्त्रस्यवः । ब्रह्मस्तेनानिरारंभाभमाहवशानुगाः ॥ ४ ॥ सोकवीरजी कहै हैं कि, तुम्हारो मन ठग है जे गुरुवालोग तिनहीं सो मान्याहै ते तुमको ठगिलीन्हे हैं । सोजब तुम ठगको पहिचानि लेउगे कि, ये ठगहैं तब तुम्हारी ठगौरी जोतरहैगी ॥ ५ ॥ इत छतीसवां शब्द समाप्त ।।