सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बीजक.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मूल रमैनी प्रारम्भ। ( अक्षर खण्डकी रमैनी) प्रथमशब्दहैशुन्याकार ॥ पराअव्यक्त सोक बिचार॥अंतः करणउदयजबहोय ॥ वैश्यतिअर्धमात्रासोय ॥ *वरसाकठ मैंध्यमाजान ॥ चौतिसअक्षरमुखस्थान ॥ अनवनिवानीतेहिकैमाहि॥ विनजानेनरभटकाखाँहि ॥ बानी अक्षर स्वर सँसुदाय ॥ अंधपश्यतिजातनशाय ॥ शुन्याकारसोप्रथमारी॥ अक्षरब्रह्मसनातनकहै ॥ निवृति ॥ अँवृतिशब्दाकार ॥ प्रणवजानेइहेबिचार ॥ साक्षी ॥ अंकुलाहटकेशब्दजो, भई चारसभेष ॥ बहुबानीबहुरूपकै पृथक पृथकसबदेश ॥ १ ॥ रमैनी॥अनवनिबानीचारप्रकार ॥ १ काल २ संधि ३ झांई ४ औ सार॥ हेतुशब्दबूझियेजोय ॥ जानिय बैंथारथ द्वारासोय॥ भ्रमिकझाइँसंधिकऔकाल ॥ सारशब्दकाटेभ्रमजाल ॥ द्वारा चारअर्थपरमान ॥ दारथ व्यंगथपहिचान भैवार्थ १९ ध्वन्यार्थचार ॥ द्वाराशब्दकोइलखेविचार ॥ परी पराइति मुखसजान ॥ मोरे' सोरहकला निदान ॥ साक्षी ॥ विनजानेसोरहकला, शब्दीशब्द कौआयें ॥ शब्द सुधारप १ इसका स्थान नाभी ॥ २ इसका स्थान हृद्य ॥ ३ सोलह स्वर अ आ इत्यादि ॥ ४ इसका स्थान कंठ ॥ ५ व्यंजन ॥ ६ नाना प्रकारकी ।। ७ एकठ्ठा ॥ ८ पश्यंति होय फिर परा अवस्था को प्राप्त होता है ॥ ९ लय।। १० उतपत्ति ॥ ११ ओंकार ॥ १२ उबिआहठ ॥ १३ सच्चा ॥ १४ भरमाने ॥ १५ मार्ग, रस्ता ॥ १६ पद, अर्थ, शब्दका जो अर्थ, शब्दार्थ॥ १७ व्यंग, अर्थं, व्यंग भाव से जो कहा जावे ॥ १८ मतलब आशय वाला जो अर्थ १९ ध्वनिमात्र ॥ २० परा और अपरा दो विद्या कोई शब्द परा विद्या को वर्णन करता हैं कोई अपरा को ॥ २१ भटकता है ॥