पृष्ठ:बीजक.djvu/३९

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                 रमैनी।
हिचानिये, कौनकहावौआय ॥२॥ रमैनी ॥ अक्षरवेदपुराणब

खान ॥ धरमकरमतीरथअनुमान ॥ अक्षरपूजासेवाजा॥और महातमजेतेथाप॥यहीकहावतअक्षरकाल जाएगडीउरहोयके भाले ॥ ओह सोहं आतमराम ॥ भायात्रादिकसब काम ।। येसबअक्षर संधिकहै ॥ जेहिमानिंशिवासर जिव रहै ॥ निरगुणअलखअकहानिर्वाण ॥ मनबुधि इन्द्रिय जायनजान ॥ विधिनिषेघजह बनितादोय ॥ कहैंकबीरपदझाईसोय ॥ साक्षी ॥ प्रथमेझाई झांकते, पैठासंधिकाल ॥ पुनिझाँईकी झांईरही, गुरुविन सकेकोटाल ॥ ३ ॥ रमैनी ॥ प्रथमही संवशब्द अमान ॥ शब्दाशब्दकियोअनुमान ॥ सालमहा तममानभुलान ॥ मानत मानत बावनठान ॥ फेट्स फिरतभयो भ्रमजाल ॥ देहादिङ्जगभये विशाल । देहभईदेहिङ्गहोय ॥ जगतभईतेकर्ता कोय ॥ कत कॅारणकर्महिलाम् ॥ घरघर लोगकियो अनुन ॥ ॐ दरशनवर्णाचार ॥ नौ छौ भए पाखंडबेकार ॥ कोई त्यागी अनुरागीकोय ॥ विधिनिषेधभावाधियादोय ॥ कल्पेउग्रंथपुराणअनेक ॥ भरभिर सबबिनाविधक ॥ साक्षी ॥ अरभिरहाल शव्द, सब्दीशब्दनजान ॥ गुरुकृपानिजपर्खवल, पश्खोधोखाज्ञान ॥ ४॥

२२ तीर ॥ २३ जगत् को निषेधकर और ब्रह्मका प्रतिपादन करना यह हैं स्त्री जिस्का ॥ २४ होताभया ॥ २५ शब्दका मालिक लब्द कहने वाला ॥ २६ हेतु॥२७१योगी२ जंगम३ सेवड़ा ४ सन्यासी'५दर्वेश ६ छठांकहिये ब्राह्म ण छ घर छ है भेश ॥ २८ ब्राह्मण १ क्षत्री २ वैश्य ३ शूद्र ४ वर्ण और ब्रह्मचर्य १ गृहस्थ २ बाणपस्थ ३ सन्यास ४ आश्रम ॥ २९-३०= छयानवेपाखण्ड ३१ विरक्त ॥ ३२ गृहस्थ ॥