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६ ३३८) बीजक कबीरदास । ताका काराकह्यो औ म्याना छोटा को फ़ारसी में है हैं सो वह मन छोटा नहीं है बड़ो है सब संसार अरु चारों शरीर मनमें भरॉहै ॥ २ ॥ प्रकट सो कंथ गुप्ताधारी। तामें मूल सजीतनि भारी ॥ ३॥ अरु जो बहुत योग करकै ब्रह्मांड में प्राण चड़ाईकै प्राणको गुप्तकिया है। सो प्रकटे हैं ते वे योगी कंथाजो है शरीर ताको धारण किये रहै हैं बहुत दिन इजियै हैं ताक हेतु यहहै कि, मूल सजीवनि अमृतहै सो भारी कहे बहुतहै से चुवत रहै हैं जैसे सेबनी औषधि महाप्रलय भये नहीं रह जाइहै सो याके वह जियाँव है सोऊ नहीं रहजायहै तैसे जो कोई मूड़ काटि डारयो अथवा कोई शरीर को खाइलियो तब नं वह अमृत रहिनाइ न वे रहिजाईं ॥ ३ ॥ वा योगिया की युगुति जो बूझै । राम रमै सो त्रिभुवन सूझैध अमृत वेली क्षण क्षण पीवै। कह कबीर सो युग युग जीवैः सो ये जो हैं योग से युगुति करिकै जियै हैं आखिरमें इनको जन्म मरण नहीं छूटै से: या नोगियाको हठयोग छोड्रिकै जो कोई वा योगी की युगुति बूझ ने राजयोग करनवार हैं सो रामरमै तब वाको त्रिभुवन रामई सूझिपरै॥४॥ अरु श्री कबीरजी कहे हैं कि, अमृतबेलि जो है रामनाम ताकेको क्षण क्षण में पिये कहे श्वास श्वास में राम नाम स्मरण करे है सोई हनुमान् बिभीष्णादिक के तरह युगयुर: जियै है औ जनन मरणते रहित वैजाइहै ।। ५ ।। इति छाछठवां शब्द समाप्त । अथ सरसठवां शब्द ॥ १७॥ जोरै वीजरूप भगवाना । तौ पंडित को बूझौ आना।।१।। काँमन कहां बुद्धिओंकारारिज सत तम गुण तीन प्रकारार विष अमृत फल फलै अनेकाविहुधा वेद कहै तरबेका ॥३॥ कद्द कवीर ते मैं जानो। कोचौं छूटल को अरुझानो॥४॥ | जो आगे कहिये कि जो कोई रामनाम लेइहै सोई जनन मरणते रहित होइहै सो कई हैं ।