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पृष्ठ:बीजक.djvu/३९५

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शब्द । | (३४७) अथ इकहत्तरवां शब्द ॥ ७१ ॥ | गुरु मुख । चातक कहा पुकारे दूरी । सो जल जगत रहा भरपूरी ॥१॥ जेहि जल नाद विन्दुका भेदाषटकर्मसहितउपान्योवे २ जेहि जलजीव सीवकावासासोजलधरणिअमरपरकासा३ जेहि जलउपजेसकलशरीरासोजलभेदनजानकवीरा॥४॥ चातृक कहा पुकारे दूरी। सोजल जगत रहा भरपूरी ॥ १॥ जेहि जल नाविन्दुकाभेदोषटकर्मसहितउपान्यावेदा २॥ | सब गुरु परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्र कहहैं कि, हे चातक दूर दूरि तें कहा पुक है कि पियासोहीं पियासे जैन स्वातीको जल तें चाहेहै जाते पियास बंद कैनाइहें सो राम नाम रुपी जल स्वातीको मुख्य मुक्तिको साधन जगत्में पूरि रह्यो है हैं कहां और और मुक्तिक साधनको खोजत फिर ॥ १ ॥ औ | जौने रामनामरूपी जलमें नादबिंदु के भेद है अपने घट मात्रनले वेदक उपन्यों कहे उत्पत्ति किया है ॥ २ ॥ जेहिजलजीवसीवकावासासोजलधरणिअमरपरकासा ३॥ जेहिजलउपजेसङ्कलशरीरासोजलभेदनजानकवीरा ॥४॥ | जौने रामनामरूपी जलमें जीव जेहैं सीव ने नानाईश्वर तिनको बासहै औ सोई रामनामरूप जब धरणि में जो कोई जैपै ताको अमर करै हैं या प्रकाश कहे जाहिरैहै अथवा वा अवनीमें नाशमान नहीं होयहै या जाहिर हैं पियासो काहे मरै है ॥ ३ ॥ जेहि राम नामरूपी जलते सकल शरीर उपनै है अर्थात् संसारमुख अर्थते अनन्त ब्रह्मा उपजै हैं रामनामरूपी जलको भेद कबीरा कहे कायाके बीर जे जीव हैं ते नहीं जाने हैं अर्थात् जो रामनाम मोको बतावै है सो जे विचार करै तौ चिदविग्रह करिकै सर्वत्र महीं देखो परौ तौ मेरी भक्ति जलपान कारकै मुक्ति वैजाइ हैं । ॥ संसारताप बुताई जाइ है ॥ ४ ॥ इति इकउत्तरवां शब्द समाप्त ।