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(३४६ ) बीजक कबीरदस । मिथ्या हैं ऐसो जो मानौ तौ जो खेतमें बोवनको होइ है, सो तुम मुदै पशु की मासकी मास खाउ हौ अरु वे तुम्हारे जीतही यमपुरमें मांस खाईं जों कहाँ हम देवताको बलि चढाइकै खाइ हैं तौनेपर कहै हैं ॥ २ ॥ माटीको करि देई देवा जीव काटि कटि देइयाजी। जो तेराहै सांचा देवा खेत चरत किन लेइयाजी ॥ ३॥ | मार्टीको तौ देवता बनाओ। उसके आगे जीव काटि काटि कै राखौहीं यह कैसी गाफिली तुमको घेरी है जो माटाको देवता सच है तो जब बोकरी खेतमें चरती है तब तुम्हारा देवना काहे नहीं खाता क्या देवताके किसीका इर है भाव यह है कि, तुम कहेको हत्या; लेतेहो अंगुरिआयदे जो सांचा होयगो तै खाइगो तेहिते तुम्हारी देवता मिथ्या है खेतमें चरत बोकरीको न खाइ सकैगः ॥ ३ ॥ कहै कबीर सुनोहो संत रामनाम नित लैयाजी । जो छु किया जिल्ला स्वारथ वदल पारा दैयाजी॥ सकबीरजी कहे हैं कि, जिनके जिनके गलाको तुम काटतेही ते सब तुम्हारो नरकमें गला काटेंगे तैहिते रामनामको नितलेउ भाव यह हैं जब नाम्मापराध छोड़ि रामनाम लेउगे और फ़िार पातक न करौगे तबहीं तुम्हारे पातक जाइंगे तामें प्रमाण ॥ * हरिहरति पापानि दुष्टचित्तैरपि स्मृतः । यदृच्छयापि संस्पृष्टे दहत्येव हि पावकः ॥ रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्। नरो न लिप्यते पापैभुक्तिं मुक्ति के विंदति ? ॥ दशनामापराधमें प्रमाण ॥ संतां निंदा नाम्नः परममपराधं वितनुते यतः ख्यातिं जातं कथमिह सहेद्धेलनमदः । शिवस्य श्रीविष्णाय इह गुणनामादिसकलं धिया भिन्नं पश्येत्स खलु हारनामा हितकरः॥ गुरोरज्ञा श्रुतिशास्त्रानंदनं तथार्थवादी हरिनाम कल्पनं । नाम्नो बलाद्यस्य हिं पापबुद्धिर्न विद्यते तस्य यमैर्हि विच्युतिः ॥ श्रुत्वापि नाममाहात्यं यः प्रतिरहिताधमः । अहं ममारिपरमो नाम्नि सोप्यपराधकृत, ॥ ४ ॥ इते सभरवां शब्द समाप्त । राध छोड़ि रामनाम दिईरति पापानि दुष्टचदेति वा स्मरन्