पृष्ठ:बीजक.djvu/४०३

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शब्द। वेद किताबके तात्पर्यत देखे। तौ न कोई पुरुष जानिएरै न नारी जानिपरै सो नव पुरुषही नारीक भेद नहीं है तो हिन्दू मुसल्मान कैसे भेद भयो ॥ १ ॥ माटी को घट साज बनाया नावे विंदु समाना । अट विनशे क्या नाम धरहुर्ग अहमक खोज भुलाना २ एकै हाड़ त्वचा मल मुत्रा रुधिर गूद यक मुद्रा ।। एक विंदुते सृष्टि रच्यो है को ब्राह्मण को शुद्रा ॥३॥ नाभीके तरे जो दश आंगुरकी व्यातिहै औ 'नाने में नव प्राण वायुको संयोग होइहै तब नाद उठै है तामें बिंदु समाइगयो तब माटीका वट यह पंडभयो ताहीको नाम धरावे? जब यके वट बिनशिगयो कहे शरीर छूटिगयो तव या क्या नाम दरोगे अर्थात नामरूप याके सब मिथ्या हैं अहमक जो है नीव सो नाम रूपक खोनमें नुठाइ गयो ये सब जीवात्मा के नाम रूप नहीं हैं ॥ २ ॥ सः एकै हाड़ादिकनने औ एकै बिंदु कहे वीर्य ते सकल सृष्टि भई है काको हिन्दू कहैं का मुसल्मानक का को ब्राह्मण कहें काको शूद्रक शरीर में यही साज सबके हैं अरु वेदमें कर्म किताब में शरायंही ते नानाभेद लगे हैं नो विचारिकै देखे त नाम रूपहीको भद लगि रह्या है आत्मा तो सबको चितही है औ मांस चाम सबके पांचभैनिकही हैं अब ने गुणाभिमानी हैं तिनका कहै हैं ॥ ३ ॥ रजगुण ब्रह्म तमोगुण शंकर सतोगुणी हार सोई । कहै कबीर राम रमि रहिया हिंदू तुरुङ , कोई ॥४॥ वही नाम रूए के भेदते ब्रह्मा रजोगुणी शंकर तमो गुशी घ्णु सतोगुणी भये हैं वहीं नामके भेदते मुसल्मानमें इनहों को अनाजीड मैकाईल इजराईल कवीरजी कहै हैं कि येतो सर्वनाम रूपके भेद हैं इनको सबको आत्मा एकई है। तिनमें अंतर्यामी रूपते मनवचन के परे परमपुरुष पर श्रीरामचन्दई रमि रहे। हैं । जो कहो राम नामौ तौ नाममें अवै है तौ रामको नाम मन वचनमें नहीं आवै है आपही स्फुरित होइदै तेहिने नामत्व नहीं है अरु श्रीरामचन्द्र