पृष्ठ:बीजक.djvu/४०४

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(३५६) बीजक कबीरदास । निर्गुण सगुणके परे हैं तिनको जानै औ जो आत्मा नाम रूपते भिन्नहै न हिन्दू है। न तुरुक है तामें येई राम रमि रहे हैं या हेतुते सबको आत्मा इन्हींको दास है। तेहिते इनहाँको जो जाने सोई मुक्त होइई परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्र निर्गुण सगुणके परे हैं तिनहींको राम नाम जाने मुक्ति होइ है तामें प्रमाण ।। “रामके नामते पिंड ब्रह्मांड सब रामका नाम सुनि भर्म मानी। निर्गुण निराकार के पार परब्रह्महै तासुका नाम रंकार जान । विष्णु पूजाकरें ध्यान शंकर धेरै भनें सुबिरंचि बहु बिबिध बानी । कहै कबीर कोइ पार पाव नहीं रामक नाम अकह कहानी ॥ ४ ॥ इति पचहत्तरवां शब्द समाप्त । अथ छिहत्तरवां शब्द ॥ ७६॥ अपन पौ आपुही विसरो।। जैसे शोनहा कांच मंदिर में भर्मत भूक मरो ॥ १ ॥ ज्यों केहरि वपु निरखि कूप जल प्रतिमा देखिपरो । ऐसेहि मद गज फटिकशिलापर दशननि अनिअरो॥२॥ मर्कट मुठी स्वाद ना विहुरै घर घर नटत फिरो॥ कह कवीर ललनीके सुवना तोहिं कवने पकरो ॥३॥ | अपन प आपुही विसरो।। जैसे शोनहा कांच मैदरमें भर्मत भंकि मरो ॥१॥ ज्यों केहरि बयु निरखि कूप जल प्रतिमा देखिपरो ऐसेहि मद गज फटिक शिलापर दशननि आनि अरोर अपनपौ कहे आपने जे परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्र हैं तिनको आपही ते यह जीव विसरि गयो जैसे कुकुर कचके मंदिरमें आपनो रूप देखि देखि भर्मते पूँकि मूंकि मेरैहै ॥ १ ॥ अरु जैसे केहरि कूपके जलमें अपनी प्रतिमा