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पृष्ठ:बीजक.djvu/४०८

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बीजक कबीरदास।

हरिवाजी सुर नर मुनि जहँडे माया चेटक लाया। घरमें डारि सबन भरमाया हृदया ज्ञान न आया ॥२॥ बाजी झूठ वाजीगर साँचा साधुनकी मति ऐसी कह कबीर जिन जैसी समुझी ताकी गति भइ तैसी॥३॥ हरि जे साहब तिनकी बाजी जोसंसार तामें साहबको हेतु न नानिकै सुर• नर मुनि ने हैं ते रामनामको संसार मुख अर्थ करिकै मायाके चैटकमें जहँडिगये अर्थात् भूलिगये सो माया इनको वर जे संसार तामें डारिकै भरमाय दियो हृदयमें ज्ञान न होतभयो तौन हम जान्या साहब सुरति दियो नैं अपने पास बोलाबैको से या नीव अपहीते संसार वाजौरचि भूलिंगयो॥२॥ बाजी जो संसार सो झूठ बाजीगर जो जीव सो सांचहै सो साधनकी मति तो ऐसी हैं और जे सब बद्धजीव ते जैसे समुझिनि है ताकी तैसी ही गति भई है सो गतिहू सब अनित्य है ॥३॥ इति अठहत्तरवां शब्द समाप्त । अथ उन्नासीवां शब्द ॥ ७९ ॥ कहो हो अम्बर कासों लागा। चेतनहारे चेतु सुभागा ॥१॥ अम्बर मध्ये दीसै तारा। यक चेतै दुजे चेतवनहारा ॥२॥ जेहि खोजै सो उहवां नाहीं।सोतो आहि अमर पद माहीं ॥ कह कवीर पद बूझे सोई । सुख हृदया जाके यक होई॥ कहो हो अम्बर कासों लागा । चेतन हारे चेतुं सुभागा॥१॥ अम्बर मध्ये दीसै तारा । यक चेतै दुजे चेतवनहारा॥२॥ तैंतों सुभागहै साहब कोहै तें काहे मन माया ब्रह्ममें लगिकै अभागा द्वैरहै है चेत करनवारे तें चेत तोकरु अंबर जो है लोक प्रकाश रूप ब्रह्म सो कहां लागाहै अर्थात वह काको प्रकाश है वह साहब साहबके लोकको प्रकाश चेततों करु ॥ १ ॥ वह अम्बर जो है लोक प्रकाश ब्रह्म तामें तारा देखाइहै कहे