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पृष्ठ:बीजक.djvu/४१२

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( ३६४) बीजक कबीरदास । नो जीव जयदेव सो काते है अर्थात् अहंब्रह्म बुद्धि जब समष्टि जीव कियोहै। तवहीं मनकी उत्पत्ति भई कर्म भयो है संसार प्रकट भयो है ॥ २ ॥ तीन लोक ताना तनो ब्रह्मा विष्णु महेश ।। नाम लेत मुनि हारिया सुरपति सकल नरेश ॥३॥ तीनलोक जॉहै सोई ताना तन्यो है ताको तीनि खुटा रजोगुण ब्रह्मा मृत्युलोक के सतोगुण विष्णु आकाशके तमोगुण महेश पातालके। अरु अनेक जे नामहैं अनेक जे मतहैं अनेक जे ज्ञान हैं वेदमें सोई कपरा तयार भयो तिनको नाम लेत मुनि औ इंद्र औ सवराजा हारि गये। वही ब्रह्मरूपी कपराके गठियामें कसे रहिगये वासों निकसिकै मुक्ति न पावत भये अर्थात् मोको न जानत भये ॥३॥ विन जिह्वा गुण गाइया विन बस्ती का गेह ॥ सूने घर का पाहुना तास लावै नेह ॥ ४ ॥ कहत का भये कि विन जिह्वा जे गुण गाव है कहे अजपा जो है साहे तौने अजपाको साथ गाइकै कहे जपि जपिकै बिन बस्तीको गेह जो है ब्रह्म झूठा तौने कपराके गठिया के भीतर बँधि जातभये कहे यह मानत भये कि हमही ब्रह्म । सो वह घरतो देशकाल बस्तु परिच्छेदते शून्य है सो जैसे सुने घरमें पाहुना जाये औं कुछ न पावै तैसे जीव उहां कुछ न पावतभयो येतौ रामनाकके जगत्मुख अर्थ करि सब यह कपरा बिनो अरु श्रीकवीरजी साहवमुख अर्थकरि कौन कपरा बिनै हैं सो कहे हैं ॥ ४ ॥ चारि वेद कैंड़ा कियो निराकार किय रास । विनै कवीरा चूनरी पहिरै हरिके दास ॥ ५॥ चारिवेद को कैंड़ा करिकै औ निरङ्कारको राशि वनाइकै वही निरङ्कारके भीतरते निकासि लैजाईकै । अर्थात् प्रकाशरूप ब्रह्म कौनको प्रकाशहै ? तब यह बिचारेउ साहबके लोकको प्रकाशहै । लोक कौनको है । यही बिचार करिबो हैं ब्रह्मते वेदको तात्पर्य निकसिबो है सो चारिउ वेदको कैंड़ा करिकै ब्रह्म जो है। राशि तौनेते वेदको तात्पर्य निकासि रामनामकी चूनरी श्रीकबीरजी कहै हैं कि