पृष्ठ:बीजक.djvu/४२२

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(३७४) | बीजक कबीरदास । आमिष धरिदेउ त दूध भात न खायें आमिषहीं खायँ तैसे साहब पुकारतई जाय कि तुम मेरे पास आको मैं तुमको हंसरूप देउँ ताको छोड़िके जीव माया ब्रह्मके धोखामें लग्यो कागई होइहै नाना कमैके बासनन ते शरीर छूटतमें जहां २ मन को मत होइँहै कहे जहां २ मन जाईंहै तह २ सब देहू धेरै है नाद बिंदुके बिस्तारते सो नाद बिंदुको बिस्तार लिखि आये हैं ॥ २ ॥ सकल कबीरा बोलै बानी पानी में घर छाया । लूट अनंत होत घट भीतर घटका मर्म न पाया ॥३॥ अरु ज्ञानी जे सब जीव ते यह बाणी बोलै हैं कि यह शरीर पानी को घर छायाहै कहे पानीको बुल्ला है न जानो कब बिनशि जाय कहे छूट जाय सो मुखते तो यह है है अरु घट कहे शरीरके भीतर अनंत कहे बिना अंतको है साहब ताकी लूट होइनाइहै ताको नहीं देखैहै यह आत्मा साह बको है तोको भुलाइकै औरे मतनमें लगाइ देइहै वाको मर्म नहीं पावै ॥३॥ कामिान रूपी सकल कवीरा मृगा चरिंदा होई। बड़ बड़ ज्ञानी मुनिवर थाके पकरि सकै नहिं कोई॥ सब कबीर जीवनके शरीर कामिनि रूपीहै कहे मृगीरूपी है तामें जो चलै सो चरिंदा कहावैहै सो चरिंदा कहे चलनवारो जोहै मन सो मुगाहै जब यह मीवात्माको यमदूत एकपुतरा देखावै हैं तब वह पुतरामें मनोमय जो लिंग शरीरहै सो जात रहै है अरु वही के साथ जीव प्रवेश करिनाइहै तब यमराज नाना कर्म भोग करावै हैं जौने शरीरमें मन लोभ्यो मरतने वाको स्मरण भयों सोई शरीर कर्म भोग करिकै धारण कियो सो मरितो यह भौतिते जायहै वह मंत्रको औ आत्मा के स्वरूपको कोई न पकरिपायो अर्थात् कोई न जान्यो ॥४॥ ब्रह्मा बरुण कुबेर पुरंदर पीपा प्रहलद चाखा। हिरणाकुश नख उदर बिदारा तिनहुँक काल न राखाद | गोरख ऐसो दत्त दिगम्बर नामदेव जयदेव दासा । उनकी खबार कहत नहिं कोई कहां किये हैंबासा॥६॥