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पृष्ठ:बीजक.djvu/४३

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(४०)                 
                    रमैनी । 

भरमबढीशिरकेशबढ़ावे ॥ तकेगगन कोइ बांह उठावे ॥ देैता री करनाशाग है ॥ भरमिकगुरू बतावे लहै ॥ भरम बढ़ी अरु घूमन लागे ॥ विनु गुरु पारख कहु को जागे ॥ साक्षी ॥ कहैं कबीर पुकारके, गहहुशरणतजिमान ॥ परखावे गुरभरमको, वानि खानसहिदान ॥ ११॥ रमैनी भरमजीव परमा तममाया॥भरमदेहऔ भरम निकाया । अनहदनाद औ ज्यो ति प्रकास ॥ आदिअन्तलौभरमहि भास ।। इत उत करे भरम निमान ॥भरम मान औभरमअमान॥कोई जगतकहाँसे भया॥ ईसबभरम अतीनिरमया ॥ अँलय चारि भ्रमपुण्य औ पाप ॥ मन्त्रजापपूजाभ्रमथाप ॥ साक्षी ॥ बाट बाट सब भर्म है, माया रचीवनाथ ॥ भेद बिना भरमें सकल,गुरू विन कहाँलखाय ।। १२ ( बापपूत दोउ भरमहै, मायारची बनाय ॥ भेद बिनाभरमें सकल, गुरु बिनकहाँलखाय ) ॥ साक्षी ॥ बापपूत दोऊ भरभ, अधकोश नवपाँच ॥ बिन गुरु भरम नछुटे, कैसे वैसाच ॥ १३॥ रमैनी । कैलमा बग निमाज गुजारे॥भरमभई अल्लाहपुकारै ॥ अजबभरम एकभई तमासा॥ लें। मुकाम बेचूननिबासा ॥ वेर्नेमूनवह सब केपारा॥ आखिरताको करे दिदोरा ॥ रगडेनाक मॅसजिदअचेत ॥ निंदे बैत

७९ स्थित ॥ ८० नित्य प्रलय १ नैमित्तिक प्रलय २ महाप्रलय ३ आत्यं तिक प्रलय ४ ॥ ८१ अधामात्र ॥ मुसलमानों का गुरु मन्त्र लो एला इलि लाह मुहम्मदुर्रस लिल्लाह ॥ ८३ अनान जो निमाज पढ़ने के थोड़ेही पहले निमाज के समय सूचन करने को कलमा श० पुकारते हैं ॥ ८४ जो खुदा के प्रार्थना पांच समय दिन और रात्री पढ़ते हैं पश्चिम मुह होकर ॥ ८५ स्थान रहित ॥ ८६ निराकार ॥ ८७ अदितीय ॥ ८८ क्यामतके दिन,सृष्टि के अंत में जब खुदा सबका न्याय करेगा ॥ ८९ दर्शन ॥ ९० मुसलमानों के नेमाज़ पढ़ने की जगह ॥ ९१प्रतिमापूजक ॥